वाकई में बीजेपी की अंदरुनी कलह की भेंट चढ़ी गई वर्तमान सांसद की टिकट!
सिवान। एनडीए में सीटों के बंटवारे की घोषणा के बाद जब से सिवान में जेडीयू द्वारा चुनाव लड़ने की जानकार
सिवान। एनडीए में सीटों के बंटवारे की घोषणा के बाद जब से सिवान में जेडीयू द्वारा चुनाव लड़ने की जानकारी जनता को हुई, तब से रोजाना ही जिले के चौक-चौराहों, यहां तक की गांवों में भी चाय की चुस्की के साथ तरह तरह की चर्चाएं आम हैं। हर कोई बस यह जानना चाहता है कि आखिर बीजेपी ने अपनी दावेदारी किन कारणों को लेकर छोड़ दी। क्या इसके पीछे बीजेपी का वर्षों से चल रहा अंदरुनी कहल का हावी होना है? इसके बारे में फिलहाल जिला बीजेपी का कोई भी पदाधिकारी कुछ भी बोलने से कतरा रहा है। यह बात सही मायने में पचने योग्य नहीं है कि जिस ओमप्रकाश यादव ने पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के किले में सेंध लगाकर लालटेन के तिलस्मी माय समीकरण को ध्वस्त कर कमल का पताका लहराया, उस सांसद का टिकट कैसे कट गया। जब जमीनी हकीकत तलाशने की कोशिश की गई तो वर्तमान का पूर्वानुमान सही पाया गया। पूर्व से सांसद के खिलाफ उनकी ही पार्टी में उठ रही आवाज टिकट कटने का सबूत बयां करती हैं। कभी सांसद को जिले में विकास के नाम पर पार्टी के जिलाध्यक्ष मनोज सिंह द्वारा नंबर देकर उनका आंकलन करना विवाद के बीज को उजागर करने के बराबर था जिस पर एमएलसी टून्ना पांडेय ने एक दुष्कर्म के मामले में आरोपितों को बचाने का आरोप लगाकर इस बीज को सिचने का काम किया। वहीं सांसद के पुत्र को लेकर भी पार्टी के अंदर की लड़ाई समय समय पर जनता के सामने आई। इस तरह के ऐसे कई कारण हैं जो सांसद के टिकट में बाधा बनकर सामने आईं। बहरहाल पिछले 10 वर्षों से सिवान में बीजेपी का कमल खिल रहा था। पार्टी ने जमीनी स्तर पर काफी मेहनत की और उसे अब आगे सूखने से बचाने की जिम्मेदारी पार्टी के पदाधिकारियों के कंधे पर है। वहीं इस अंदरुनी लड़ाई का लाभ लेने में विपक्षी खेमा कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता है।
किन कारणों में कटी सांसद की टिकट, सुने सांसद की जुबानी :
टिकट कटने के बाद जब सांसद ओमप्रकाश यादव से उनके टिकट कटने के कारणों के बारे में जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि जातिगत उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा होने के कारण सिवान संसदीय क्षेत्र का सीट बीजेपी ने ड्रॉप कर दिया। बताया कि यादव जाति से चार उम्मीदवार विभिन्न लोकसभा सीट के लिए बीजेपी से दावेदारी कर रहे थे लेकिन पार्टी का निर्णय था कि तीन पर ही उसे अपने उम्मीदवार देने हैं। ऐसे में सिवान के टिकट को जेडीयू के खाते में देने का निर्णय लिया गया। वहीं इस सीट के लिए मुख्यमंत्री भी दिलचस्पी दिखा रहे थे। हैरानी तो उस समय हुई जब सांसद ने जिलाध्यक्ष पर टिकट काटने का ठिकरा फोड़ दिया। सांसद के अनुसार जिलाध्यक्ष ने उनकी दावेदारी को कमजोर करने का काम किया जिसमें उनके साथ पार्टी के शीर्ष नेताओं ने भी साथ दिया। सांसद ने कई तरह के आरोप लगाए जो पार्टी के अंदर के अंदरुनी कलह को उजागर करने के लिए काफी थे।
कलह का एक और सबूत- 'जो चाहता था वह हो गया' :
चुनाव की घोषणा से पहले और सीट बंटवारे पर एनडीए की सहमति से पूर्व एमएलसी टून्ना पांडेय ने सांसद के खिलाफ जमकर अपनी भड़ास निकाली थी। एमएलसी ने तो सांसद के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा भी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से आम की थी लेकिन टिकट कटने के बाद जदयू के नेतृत्व में एनडीए के चुनाव लड़ने की घोषणा होने के साथ ही एमएलसी ने चुनाव लड़ने के सपने को छोड़ दिया और यह तक कह डाला कि मैं जो चाहता था वो हो गया। मैं सांसद का टिकट काटना चाहता था, उनका टिकट कट गया, मेरी जीत हो गई।
विकास का मुद्दा और आम जनता की नाराजगी भी एक बड़ा फैक्टर :
लोकसभा चुनाव लड़ने की रेस से फिलहाल बाहर हुए सांसद ओमप्रकाश यादव के टिकट कटने के पीछे एक बड़ा कारण आम जनता के बीच उनको लेकर नाराजगी भी है। जब आम जनता से इसके बारे में पूछा गया तो कईयों ने पूर्व में सांसद द्वारा किए गए अनदेखी को सामने रखा और उनका हवाला देकर टिकट कटने की बात कहीं। वहीं जीरादेई में विकास के नाम पर जनता के साथ दोहरी नीति अपनाना भी आम नाराजगी का सबसे बड़ा कारण बन गई। गांव वालों के अनुसार जीरादेई को सांसद ने गोद लिया था लेकिन सांसद के गोद से यह गांव कभी उतर कर चलने लायक हुआ ही नहीं। वहीं बीच में इस बात को लेकर भी खूब चर्चा हुई जब सांसद ने अपने निधि से पड़ोसी जिला गोपालगंज में कई फंड दिए।