...और तब स्वतंत्रता सेनानी ने महात्मा गांधी को भेंट की थी चांदी के एक हजार के सिक्के Siwan News
स्वतंत्रता के लिए पूरे देश में महात्मा गांधी घूम घूम कर लोगों को जागरुक कर रहे थे। इसी दरमयान वो सिवान जिले के महाराजगंज भी आए थे।
महाराजगंज, जेएनएन : देश की आजादी में सिवान के महाराजगंज अनुमंडल की भूमिका भी अहम रही है। यहां के स्वतंत्रता सेनानियों के हौसला अफजाई के लिए स्वयं बापू जी ने यहां आकर सभा को संबोधित किया था। इतना ही नहीं यहां पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप ने भी आकर जनता को संबोधित किया था। आज एक बार फिर अनुमंडल अपने स्वतंत्रता सेनानियों की याद ताजा कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
यह वहीं धरती है जहां 1927 में महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम को धारदार बनाने के लिए बिहार आने के क्रम में महाराजगंज स्थित शहीद स्मारक के स्थल पर पहुंच यहां के लोगों का हौसला बढ़ाया था। 17 जनवरी 1927 को जब वे महाराजगंज की धरती पर पहुंचे तो शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के कई हजार लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था। उसी स्थल से गांधी ने एक सभा को संबोधित करते हुए नौजवानों को देश की आजादी में बढ़-चढ़कर कर भाग लेने की अपील की थी।
स्वतंत्रता सेनानी, पूर्व विधायक उमाशंकर प्रसाद ने चांदी के 1001 रुपए के सिक्के भेंट कर आजादी की लड़ाई में बापू को आर्थिक मदद की थी। उनकी ललकार के बाद फुलेना प्रसाद, सियाराम सिंह, बमबहादुर, उमाशंकर प्रसाद, इंद्र स्वर्णकार, सुरेंद्र सिंह, देवशरण सिंह सहित कई नौजवान बापू के आह्वान पर जंग ए आजादी में कूद पड़े। पूरा क्षेत्र असहयोग आंदोलन एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़ गया। इसी का नतीजा हुआ कि 16 अगस्त 1942 में नौजवान फुलेना प्रसाद अपने साथियों के साथ तिरंगा झंडा लेकर थाने पर फहराने चल पड़े थे। अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे आगे बढ़ते जा रहे थे, और उनके हौसले को देख सिपाहियों ने उन्हें एक साथ गोलियों से छलनी कर दिया था, लेकिन फुलेना बाबू ने थाने पर झंडा फहरा कर ही अपनी प्राणों की आहुति दी।
उनकी याद में उसी स्थल पर स्मारक बना दिया गया। इस स्मारक में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सहित कई केंद्रीय मंत्री सभा को संबोधित कर चुके हैं। प्रखंड कार्यालय परिसर में गांधी स्मारक का निर्माण निर्माण कराया गया, जिसमें उमाशंकर प्रसाद ने अपने निजी कोष से बापू की मूर्ति को स्थापित कराया।