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जीरादेई में मिल रहा प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य

सिवान। प्रखंड क्षेत्र के मुइयां गांव के चंवर में इंडियन ऑयल के पाइप बिछाने के लिए खुदाई के क्रम में

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Jun 2018 04:57 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jun 2018 04:57 PM (IST)
जीरादेई में मिल रहा प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य
जीरादेई में मिल रहा प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य

सिवान। प्रखंड क्षेत्र के मुइयां गांव के चंवर में इंडियन ऑयल के पाइप बिछाने के लिए खुदाई के क्रम में प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य मिल रहे हैं। इसे देखने के लिए लोगों में उत्सुकता बढ़ रही। कुछ विद्यार्थी इसे चुन कर अध्ययन करने के लिए रख रहे हैं। यह स्थान मुइयांगढ़ से उत्तर मात्र 100 मीटर की दूरी पर है। लगभग 500 मीटर की रेंज में खुदाई से मृदभांड मिल रहा है, हालांकि खुदाई मात्र 6 फीट गहरा एवं 3 फिट चौड़ा हो रहा है

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केवल पाइप बिछाने के लिए। वहीं पुरातात्विक स्थलों पर शोधकर रहे शोधार्थी कृष्ण कुमार ¨सह ने बताया कि जीरादेई का पश्चिमी क्षेत्र पुरातात्विक साक्ष्यों से भरा पड़ा है, आवश्यकता है केवल उत्खनन कर सामने लाने की। उन्होंने बताया कि गत माह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसी स्थान से मात्र तीन किलोमीटर उत्तर परीक्षण उत्खनन में महत्वपूर्ण पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त किया,यहां प्राप्त हो रहे मृदभांड के प्राचीनता के बारे में केपी जायसवाल

शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. जगदीश्वर पांडेय एवं पुरातत्वविद डॉ. नीरज पांडेय ने बताया कि इसे एनबीपी कहते हैं जो काले रंग का पतला एवं हल्का होता है। उसका काल 600 से 200 इशा पूर्व तक माना जाता है। बौद्धकाल में भी इसका बहुत प्रचलन था तथा समाज के धनी उव संभ्रांत व्यक्ति इस मृदभांड में भोजन करते थे।

पुरातत्वविदों ने बताया कि यहां लाल एवं भूरा मृदभांड भी दिखाई दे रहा है तथा बालू का मिल रहा रेत प्राचीन समय में किसी नदी का होने का संकेत है तथा पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्राचीन समय में यह क्षेत्र विकसित शहर था। इस पुरातात्विक क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए सरकार एवं जनप्रतिनिधियों को आगे आना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी अपनी इतिहास को जान एवं समझ सके। ग्रामीण कमल ¨सह, अंकित मिश्रा

के अनुसार पूर्व में भी इसके आसपास पुरातात्विक महत्व के अनेकों साक्ष्य मिल चुके हैं।


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