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थावे जाने के दौरान कुछ पल के लिए खेढ़वा रुकी थीं मां कामाख्या

सिवान वासंतिक तथा शारदीय नवरात्र में खेढ़वा माई का स्थान आस्था का केंद्र बना रहता है। इसके

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Apr 2021 10:51 PM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 10:51 PM (IST)
थावे जाने के दौरान कुछ पल के लिए खेढ़वा रुकी थीं मां कामाख्या
थावे जाने के दौरान कुछ पल के लिए खेढ़वा रुकी थीं मां कामाख्या

सिवान :वासंतिक तथा शारदीय नवरात्र में खेढ़वा माई का स्थान आस्था का केंद्र बना रहता है। इसके अलावा श्रावण मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी के दौरान पड़ने वाले शुक्रवार एवं सोमवार को यहां मेला लगता है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा करने एवं मेले में शामिल होने आते हैं। कोरोना महामारी को लेकर यहां श्रद्धालु शारीरिक दूरी का पालन करते हुए पूजा करना नहीं भूलते। ग्रामीणों का कहना है कि यहां जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से पूजा करता है उसकी हर मनोकामना मां पूरी करती हैं। ग्रामीण ललित कुमार सिंह, बादशाह सिंह, वीरबल सिंह, विनोद कुमार आदि ने बताया कि इस स्थान की काफी महत्ता है।

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ग्रामीण बताते हैं कि थावे के राजा मनन ने मां के भक्त रहषु भगत को मां के दर्शन कराने कहा। राजा ने बताया कि तुम कैसे मां का दर्शन करते हो मुझे भी देखना है। राजा के हठ के आगे रहषु भगत की एक न चली। रहषु भगत की पुकार पर मां कामाख्या चल दीं। इस दौरान पटना, आमी रुकने के अलावा यहां भी कुछ देर के लिए विश्राम की थीं, जिसकी अनुभूति आज भी श्रद्धालुओं को होती है। यहां सावन महीने के शुक्ल पक्ष सप्तमी के दौरान पड़ने वाले शुक्रवार एवं सोमवार को मेले का आयोजन होता है। उस दिन बली की प्रथा है। काफी संख्या में यहां बली दी जाती है। इस स्थल की खासियत यह है कि यहां बली के दौरान गिरे खून पर एक भी मक्खी नहीं बैठती। इसके अलावा प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार तथा वासंतिक एवं शारदीय नवरात्र को पूजा करने को भीड़ उमड़ती है, लेकिन प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए काफी कम श्रद्धालु आ रहे हैं।

यहां जाने का रास्ता :

यह स्थल भगवानपुर प्रखंड तथा बसंतपुर थाना क्षेत्र में पढ़ता है। यहां जाने के लिए बसंतपुर से तीन किलोमीटर दक्षिण, भगवानपुर हाट से 11 किलोमीटर पश्चिम, महाराजगंज से 12 किलोमीटर उत्तर तथा बसंतपुर से चार किलोमीटर दक्षिण है। यहां जाने का रास्ता निजी साधन है।


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