नहाय-खाय के साथ सूर्योपासना व आस्था का महापर्व छठ आज से शुरू
शहरी व ग्रामीण इलाकों में भगवान सूर्य की उपासना के साथ रविवार से छठ पर्व ।
सिवान। शहरी व ग्रामीण इलाकों में भगवान सूर्य की उपासना के साथ रविवार से छठ पर्व शुरू हो गया है। ¨हदू धर्म में किसी भी पर्व की शुरुआत स्नान के साथ ही होती है और यह पर्व भी स्नान यानी नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ। नहाय-खाय के मौके पर व्रती महिलाएं स्नान और पूजन-अर्चन के बाद कद्दू व चावल के बने प्रसाद को ग्रहण करती हैं। परिवार की समृद्धि और कष्टों के निवारण के लिए इस महान पर्व के दूसरे दिन सोमवार को श्रद्धालु दिनभर निराहार रह कर सूर्यास्त होने की बाद खरना करेंगे। शाम को भगवान भास्कर की पूजा की जाएगी और रोटी व दूध और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। आसपास के सभी लोग व्रती के घर पहुंचते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके साथ ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होगा, जो बुधवार को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के बाद समाप्त होगा। भक्तों की अटल आस्था के अनूठे पर्व छठ में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में अंतिम किरण को अर्घ्य देकर सूर्य को नमन किया जाता है।
आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है।
कब से शुरू हो रही है पूजा :
11 नवंबर (चतुर्थी): नहाय-खाय, इस दिन व्रती स्नानादि कर नये वस्त्र धारण कर शुद्ध व सात्विक भोजन करते हैं।
12 नवंबर (पंचमी) : खरना, पूरे दिन व्रती निराजल रहकर शाम को रोटी व रसियाव का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
13 नवंबर (षष्ठी) : शाम का अर्घ्य, इस दिन सभी व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तालाब, घाट या नदी पर जाते हैं व
14 नवंबर (सप्तमी) : सुबह का अर्घ्य, व्रत का समापन, इस दिन व्रती उदीयमान (उगते) सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा का समापन करते हैं। चार दिनों का होता है छठ पर्व :
छठ पर्व का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि से प्रारंभ होता है तथा सप्तमी तिथि को इस पर्व का समापन होता है। पर्व का प्रारंभ'नहाय-खाय'से होता है। इस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं। इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। नहाय-खाय के दूसरे दिन खरना यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में स्नानकर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद (रसियाव) तैयार कर भगवान भास्कर की अराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं। इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रतियां टोकरी (बांस से बना दउरा) में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब, या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। घर लौटने के बाद रात में कोसी भरने की परंपरा है। इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर वापस लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर'पारण'करती हैं।
छठ से जुड़ी प्रचलित लोक कथा :
एक मान्यता के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की और अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस अनुपम महापर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। व्रती किसी नदी या जलाशयों के किनारे अराधना करते हैं। इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मईया) का आगमन हो जाता है। इस पर्व में गीतों का खास महत्व होता है।
क्या है अर्घ्य का शुभ समय
आचार्य ने बताया कि छठ पूजा के पावन पर्व पर भगवान सूर्यदेव को प्रथम अर्घ्य मंगलवार की शाम 5:25 बजे दिया जाएगा। अरूणोदयकालीन अर्घ्य बुधवार की सुबह 6:34 बजे दिया जाएगा।