जागृत होगी चेतना तो नहीं छूटेगी रामकथा : मोरारी बापू
रामकथा में मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि रामकथा बारंबार सुनें जब तक हम सचेत न हो जाए तब तक सुनें।
सीतामढ़ी । रामकथा में मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि रामकथा बारंबार सुनें जब तक हम सचेत न हो जाए तब तक सुनें। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि शुरू में वराह क्षेत्र में जब अपने गुरु से रामकथा सुनी तो बचपना था मन में नहीं उतरी। लेकिन कृपालु गुरु ने बारबार कथा सुनाई। जब कथा बारंबार सुनी तो चेतना जागृत हुई। इसी तरह बारंबार रामकथा सुनने से चेतना जागृत होगी। जब तक एतबार न हो तब तक सुनें, और जब चेतना जागृत हो जाएगी तो कथा नहीं छूटेगी नहीं। जैसे गंगा बहती है तो नदी वही रहती है लेकिन क्षण-क्षण उसका पानी बदलता रहता है। उसी तरह कथा वही होगी बार-बार। लेकिन दर्शन रोज बदलेगा। जिस तरह कली क्षण-क्षण विकसित होती है, वृक्ष हर दिन नया होता। इसी तरह कथा में परमात्मा का रूप रोज नूतन लगता है। हिमालय के निकट मानसरोवर है। रामचरितमानस भी एक सरोवर है। मानसरोवर स्थिर है। लेकिन रामचरित मानस का सरोवर चलता-फिरता जंगल है। यह चांदनी की तरह हमारे गांव और घर तक आता है। संतों की पवित्र वाणी में आता है। मानसरोवर में पवित्र पानी है लेकिन उसमें डूबने पर मौत निश्चित है। लेकिन रामचरित मानस के सरोवर में जो डूबता है वह तैर जाता है। हिमालय में हंस रहते हैं लेकिन तुलसी के मानसरोवर में परमहंस रहते हैं। रामकथा के चार घाट हैं। रामकथा में मुख्य पांच चरित्र का समावेश है। राम चरित्र, सीता चरित्र, भरत चरित्र, हनुमंत चरित्र और भुषुण्डी चरित्र। लेकिन रामकथा के पहले शिव चरित्र से कथा शुरू होती है। शिव चरित्र रामकथा के लिए सेतु का काम करता है। जिस तरह कौअे ने कंकड़ डाल कर नीचे से आए पानी ऊपर आया और उसने पानी पी लिया। उसी तरह मन के कुंज में हरिनाम-सियाराम के एक-एक मणि डालते जाए आत्मबोध उपर आएगा जिसे पी कर धन्य हो जाएंगे।
रामभक्ति के लिए हनुमान को भजना होगा
सीतामढ़ी । रामकथा में मोरारी बापू ने कहा कि श्री गणेश और हनुमान दोनों प्रथम पूजनीय हैं। रामभक्ति के लिए हनुमान का भजन करना होगा उनकी पूजा करनी होगी। ' तुमरे भजन राम को पावे जनम-जनम को दुख को विसरावे'। हनुमान शंकर के अवतार हैं। बचपन में आकाश में उछल कर सूर्य को निगल लिए थे। लेकिन जब पता चला कि सूर्य तो दशरथ के आंगन में ही विराजमान हैं तो वे उनके पास आ गए। ऊपर जाना अच्छा है। लेकिन ऊपर जाने की जिद अच्छी नहीं है। ज्यादा उड़ना नहीं चाहिए। प्रकाश तो चारों ओर वैसी समझ होनी चाहिए। प्रकाश हमारे आसपास ही मिल जाएगा।
देवता के तुल्य है गुरु
सीतामढ़ी । रामकथा के दौरान मोरारी बापू ने कहा कि गुरु कृपा से राम और रामकृपा से गुरु। यह नाम भेद है। सीता की स्मृति करते-करते गुरु को पाया। गुरु ही गणेश हैं। वंदन गुरु पद कंज - गणेश का रूप है। कृपा ¨सधु शंकर हैं। कृपा के देवता हैं। करुणा के अवतार हैं। नर रूप हरि - विष्णु नरहरि हैं। महामोघ महिषेश काली हैं। गुरु कोई भी सकता है। गुरु मिल जाए बुद्ध मिल जाए। पांचों देवता के तुल्य गुरु हैं।