जहां सत्य और क्षमा , वहीं तीर्थ है
ामकथा के अंतिम दिन मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि जहां सत्य और क्षमा होती है वही तीर्थ है। कहा कि देवताओं ने भगवान शंकर से पूछा कि निमिवंशी राजओं का भू-भाग मिथिलांचल है उसे तीर्थ क्यों कहा जाता है।
सीतामढ़ी । रामकथा के अंतिम दिन मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि जहां सत्य और क्षमा होती है वही तीर्थ है। कहा कि देवताओं ने भगवान शंकर से पूछा कि निमिवंशी राजओं का भू-भाग मिथिलांचल है उसे तीर्थ क्यों कहा जाता है। तब शिव से मुंह से निकला ' सत्यम तीर्थम, क्षमा तीर्थम, तीर्थम तीर्थम, इंछिय्र निग्रहं, ज्ञानम तीर्थम, तपस तीर्थम, व्रतसतीर्थम, मुदाहृतम,सोतीर्थानी गदतो मानासानि मनायने ऐषु, सम्यक नहरं समात्वा प्रयाति-प्रायति परमंगति '। व्यक्ति, परिवार, राज्य, देश जहां सत्य हो वह तीर्थ है। व्यक्ति में परिवार में राष्ट्र में सत्य देखो उसे तीर्थ समझो। सत्य है तीर्थ। जो व्यक्ति परिवार, समाज और दूसरे को क्षमा करे वह तीर्थ है। समर्थवान के साथ न्याय होना चाहिए लेकिन गरीबों से करुणा होनी चाहिए। जो इंद्रियों को सम्यक रूप से साधता है। वह तीर्थ है। बुद्ध, महावीर, नानक, कबीर की आंखें देंखे उनकी आंखें सत्य, प्रेम और करुणा से भरी है। जिन आंखों में सत्य, प्रेम और करुणा भरी होती है वहां वासना आकर लौटती है। वासनाएं आएगी लेकिन वापस लौट जाएगी। रामकथा आंखों की सर्जरी है। तप तीर्थ है, आज के जमाने में इतने तप की जरूरत नहीं है। किसी ने कटु ¨नदा की तुमने उसे प्रणाम किया यही तप है। आलोचक से डरें नहीं अपना काम करते चलें। व्रत ही तीर्थ है, व्रत में मौन व्रत बहुत प्यारा होता है। यही तीर्थ है । इसी तरह मुस्कुराना तीर्थ है। मुस्कुराते रहो, गुनगुनाते रहो ये जीवन का संगीत है। टैगोर ने भी लिखा था कमल की पंखुरिया खुल जाए, यही निर्वाण है। लेकिन इतना ध्यान रहे किसी का दिल टूटे इससे अच्छा है कि व्रत तोड़ दो। सिया का सत्य है इसलिए वह तीर्थ है। सीता सत्य का अवतार है। सीता क्षमावान है वह तीर्थ है। सीता बैठती है तो नजर पैरों की और ध्यान राम का। यइ इंद्रिय निग्रह है इसलिए तीर्थ है। सीता परमविद्या है, सीता का तप है कि प्रजा के कटु वचन पर राम ने परित्याग किया लेकिन सीता ने कुछ न बोला यह सीता का तप है। पवित्रव्रतधारी है। इसलिए सीतामही भी परमधाम है।