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हम चाहने वाले हैं तेरे, यूं हमको सताना ठीक नहीं

मानस मर्मज्ञ प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि समय-समय पर चीजों में परिमार्जन होता रहा है। एक समय नर बलि दिया जाता था। पशु वध किया जाता था।

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Jan 2018 01:54 AM (IST)Updated: Thu, 11 Jan 2018 01:54 AM (IST)
हम चाहने वाले हैं तेरे, यूं हमको सताना ठीक नहीं
हम चाहने वाले हैं तेरे, यूं हमको सताना ठीक नहीं

सीतामढ़ी । मानस मर्मज्ञ प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि समय-समय पर चीजों में परिमार्जन होता रहा है। एक समय नर बलि दिया जाता था। पशु वध किया जाता था। सुनाया- दीवानों से मत पूछो, दीवानों पर क्या गुजरी है। जनक स्वयंवर सभा में कांप क्यों गए और कहा कि तजहुं आस निज गृह-गृह जाहुं। गंभीरता से ¨चतन करने का शास्त्र है रामचरित मानस। कहा एक फिल्म की पंक्ति है, कहो तो गांऊ- गैरो पे करम, अपनों पे सितम, ये जाने वफा ये जुल्म न कर। हम चाहने वाले हैं तेरे, यूं हमको सताना ठीक नहीं..इस गाने से श्रद्धालुओं को सिया युग की ओर ले गए। मेरा नाम सीता है वो मेरी मां पृथ्वी का प्रमाण है। सब चुप हैं। लक्ष्मण भी चुप हैं। यहां भगवान अवतार हैं। उनकी लीला को कोई परख नहीं सकता। मां जानकी की वाणी में विरह है विवेक है। सीता शब्द पृथ्वी की गवाही देती है। सुनी लक्ष्मण पावक प्रबल वैदेही, हृदय हर्ष ही भय कछु देही। हम ¨हदुस्तान की संतान हैं। मेरे राज्य को पूछो श्रीखंड। मैं मिथिला की हूं। मेरा राष्ट्र मिथिला है। सीता जी का श्री नाम है। श्री लक्ष्मी जी हैं। लक्ष्मी की उत्पति क्षीर सागर से हुई है। मातृ शरीर आठ वस्तु की रक्षा करती है। उसमें सिया जी पूर्ण खरा उतरती हैं। भरत, लखन एवं सिया की प्रीति को भगवान राम जान सकते हैं। लेकिन, कह नहीं सकते।


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