गुरु बोले तो मंत्र, गुरु चेष्टा मार्गदर्शन
मोरारी बापू ने कहा कि गुरुकृपा से पुरुषार्थ प्राप्त होता है। प्रारब्ध, पुरुषार्थ, प्रभु की कृपा सभी को गुरु कृपा ओवरटेक करती है।
सीतामढ़ी । मोरारी बापू ने कहा कि गुरुकृपा से पुरुषार्थ प्राप्त होता है। प्रारब्ध, पुरुषार्थ, प्रभु की कृपा सभी को गुरु कृपा ओवरटेक करती है। गुरु बोले तो मंत्र और उसकी चेष्ट मार्ग दर्शन है। गुरु बैठे तो वहां तीर्थ है। गुरु उस तिजोरी की चाबी की तरह है। जैसे तिजोरी में एक करोड़ रुपये हैं लेकिन उसके ताले की चाबी नहीं है। चाबी मिलेगी तभी हम उस रुपये का उपयोग कर सकते हैं। चाबी गुरु के पास है। गुरु खोज देता है उस चाबी को। परमात्मा तो सबको मिला हुआ है। ईश्वर तो है ही लेकिन बुद्ध पुरुष की खोज होनी चाहिए। गुरु नई चाबी देता है। नया विचार चाबी है। खुले आकाश में आ जा। मैंने तिजोरी खोल दी है। अविनाशी है। तेरी आकृति चली जाएगी लेकिन स्मृति बनी रहेगी जनम-जनम तक। चतुर्दशी के बाद पूर्णिमा आ जाती है। पूर्णिमा आती है तो सादत कहता है मैं कृतार्थ हो गया। बुद्ध, नानकदेव, संत तुकाराम, संत नामदेव, राजा जनक और तुलसीदास। गुरु फुलझड़ी के समान नहीं कि कुछ क्षण तक चमक बिखेर कर खत्म हो जाए। गुरु को फुलगर होना चाहिए। गुरु मिल जाए तो चरणों में शीश रख शरणागत बन जाना। गुरु के चरण बचे मैं न बचुं। केवल शरण बचे, शरणागत नहीं। जिस तरह नमक की पोटली समुद्र में डालने पर नमक का अस्तित्व खत्म हो कर समुद्र में घुल जाता है। उसी तरह गुरु के शरण में जाकर शरणागत बन उसमें मिल जाए।