सरकारी अस्पतालों की दशा से मरीजों हो रहे बेहाल
चुनाव की डुगडुगी बज गई है । चुनाव की बयार बहने लगी है। दावे और आश्वासन का दौर चल रहा है।
सीतामढ़ी। चुनाव की डुगडुगी बज गई है । चुनाव की बयार बहने लगी है। दावे और आश्वासन का दौर चल रहा है। लेकिन इस शोर में प्रखंड के लोगों की स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं होने का मुद्दा यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। चोरौत के सरकारी अस्पताल का बुरा हाल है ऐसे में निजी अस्पताल सभी जगह देखने को मिलते हैं मगर इन अस्पतालों में इलाज कराना इतना महंगा है कि मरीज को अपना घर जमीन और खेत तक गिरवी रख कर्ज लेना पड़ता है । यहां की स्वास्थ्य सेवाओं की ऐसी लाचारी स्थिति है कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा मुक्त चिकित्सकों की कमी और सुविधाओं का अभाव होने के कारण मरीजों को अंतिम विकल्प के तौर पर निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है ऐसे हालत में गरीब के लिए इलाज करना क्षमता से बाहर हो जाता है। लेकिन इस ओर न किसी का ध्यान और ने इस दिशा में कोई पहल होती दिख रही है। पंचायतों में खुला एडीशनल पीएचसी लेकिन नहीं मिल रहा लाभ गांव के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक पंचायतों तक अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए भवन का निर्माण कराया गया । यदुपट्टी में जमीन के अभाव में अस्पताल का निर्माण न होते देख कृषि विभाग रांची के डायरेक्टर सत्यदेव चौधरी ने पांच कट्ठा जमीन खरीद कर विभाग को दान किया था। उनका सपना था कि गांव के प्रत्येक लोगों को स्वास्थ का लाभ यहां से मिल सके लेकिन ऐसा नहीं हुआ । अस्पताल भवन का निर्माण तो हुआ लेकिन डॉक्टर कभी नहीं आए । पांच कमरे का यह भवन से किवाड़, खिड़की पर भी लोगों की गिद्ध ²ष्टि लग गई । प्रखंड में स्वास्थ्य उपकेन्द्र अमनपुर, चिकना, यदुपट्टी, चोरौत उतरी में है । यहां स्वास्थ्य कर्मी पदस्थापित तो है लेकिन भवन का ताला कभी नहीं खुलता। उधर, एडीशनल पीएचसी बररी बेहटा व बसोतरा में है । यहां आवश्यक संसाधन तो है लेकिन डॉक्टरों की ड्यूटी पीएचसी में ही होती है । ऐसे में सरकारी अस्पतालों पर इलाज के भरोसे रहना अपने आप मे बेईमानी है । जबकि सरकार इन अस्पतालों पर लाखों करोड़ों खर्च करती है लेकिन सिस्टम ने सब कुछ समाप्त कर दिया है। कई पदों पर आज तक पदस्थापित नहीं हुए कोई कर्मी अस्पतालों में स्वास्थ्यकर्मियों के कई पद खाली है । कई पद ऐसे हैं जिस पर कभी कर्मी की बहाली नहीं हुई । यहां फार्मासिस्ट, प्रयोगशाला प्रबंधक, ड्रेसर, महिला स्वास्थ्य परिदर्शिका, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, पुरुष कक्ष सेवक महिला कक्ष सेवक, परिवार कल्याण कार्यकर्ता के पद हमेशा से खाली रहा है । किसी घटना दुर्घटना में जख्मी मरीज की ड्रेसिग एंबुलेंस ड्राइवर भी करते हैं। महिला चिकित्सक के कमी के कारण इसी महीने एक जच्चा बच्चा की मौत हो गई ।हांलाकि यह कोई नई घटना नहीं है । चार एमबीबीएस डॉक्टरों में सिर्फ दो ही पद पर हैं। यहां तक की सफाई कर्मी भी नहीं है । जिससे चारों ओर गंदगी का अंबार लगा रहता है । इसका परिसर में अवारा पशुओं का जमावड़ा रहता है । यहां तक की बेड के नीचे अवारा कुत्ते आराम फरमाते हैं। मरीजों के बेड की स्थिति जर्जर बनी रहती है । जबकि प्रत्येक दिन अलग-अलग रंगों का साफ बेड लगाने की सूची दीवार पर टंगी है । यहां तक की दवाईयों का भी टोटा लगा रहता है । यही कराण है कि सरकारी अस्पताल के नजदीक कई दवा दुकान धड़ल्ले से चल रही है। कर्मियों की मानें तो एक महीने में करीब 5000 मरीज इलाज कराते हैं । 30 बेड वाले अस्पताल का निर्माण अब भी नहीं हुआ पूरा बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से 8 दिसम्बर 2008 को 6 लाख 30 हजार की लागत से 30 शैय्या वाला भवन का निर्माण कराया गया । लेकिन फिर भी डॉक्टरों व कर्मियों की की घोर कमी ने सब कुछ चौपट कर दिया है । प्रखंड मे बढते मरीजों की संख्या को देख सरकार ने अस्पताल की स्वीकृति 8 दिसम्बर 2008 की कैबिनेट की बैठक में दिया था। 604 मीटर के क्षेत्रफल में 3 करोड़ 76 लाख की लागत से निर्माण हो रहा है ।