सावन मास में जलाभिषेक व रुद्राभिषेक का विशेष महत्व
सीतामढ़ी। भगवान शंकर यूं तो आराधना से प्रसन्न होते हैं लेकिन सावन मास में जलाभिषेक व रुद्राभि
सीतामढ़ी। भगवान शंकर यूं तो आराधना से प्रसन्न होते हैं, लेकिन सावन मास में जलाभिषेक व रुद्राभिषेक का बड़ा महत्व है। वेद मंत्रों के साथ भगवान शंकर को जलधारा अर्पित करना साधक के आध्यात्मिक जीवन के लिए महा औषधि के समान है। पांच तत्वों में जल तत्व बहुत महत्वपूर्ण है। पुराणों में शिव के अभिषेक का विशेष महत्व है। जल में भगवान विष्णु का वास है। जल का एक नाम नार भी है। इसलिए भगवान विष्णु को नारायण भी कहते हैं। जल से ही धरती का ताप दूर होता है। जो भक्त श्रद्धालु भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं उनके रोग-शोक दु:ख दरिद्र सभी नष्ट हो जाते हैं। भगवान शंकर को महादेव इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह देव, दानव, यक्ष, किन्नर, नाग, मनुष्य, सभी द्वारा पूजे जाते हैं। श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं। शिव पुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल है। इसलिए जल से उनके अभिषेक रूप में आराधना उत्तमोत्तम फल है। इसमें कोई संशय नहीं है। जो जल समस्त जग के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसलिए जल का अपव्यय नहीं वरन उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करनी चाहिए। सोमवार के व्रत से भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और परेशानियों को दूर करते हैं। प्रदोष व्रत की तरह सोमवार व्रत में एक समय रात्रि में भोजन करना चाहिए। दिन में फलाहार किया जा सकता है। व्रत संकल्प के साथ जल, गाय का दूध, दही, घी, मधु, शक्कर अर्पित करें। इसके बाद वस्त्र, पुष्प, कुमकुम, अक्षत, बेल पत्र, भांग, धतूरा चढ़ाएं। धूप दीप दिखाकर हाथ धोकर मिठाई-फल भोग लगाएं। पान, सुपारी व दक्षिणा के बाद भगवान शिव से प्रार्थना करनी चाहिए।