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सावन मास में महादेव स्वयं कैलाश पर्वत छोड़ हलेश्वरस्थान में हो जाते विराजमान

पड़ोसी देश नेपाल के नुनथर पहाड़ व सुप्पी घाट बागमती नदी से जल लेकर कावंरियों का जत्था हलेश्वरनाथ महादेव का जलाभिषेक करने आते हैं। मंदिर प्रबंधन के सचिव सुशील कुमार के अनुसार यहां स्थापित शिव¨लग अद्भुत व दक्षिण के रामेश्वरम से भी प्राचीन है।

By Edited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 12:11 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 12:12 AM (IST)
सावन मास में महादेव स्वयं कैलाश पर्वत छोड़ हलेश्वरस्थान में हो जाते विराजमान
इलाका हर-हर महादेव से जयघोष से गूंजने लगता है।

सीतामढ़ी, जासं। सीतामढ़ी शहर से सटे फतेहपुर गिरमिसानी गांव में अवस्थित हलेश्वरनाथ महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि व सावन मास में श्रद्धा और आस्था का अदभुत सैलाब उमड़ पड़ता है। इलाका हर-हर महादेव से जयघोष से गूंजने लगता है। कहा जाता है कि यहां मत्था टेकने वालों की झोली कभी खाली नहीं रहती। उनकी हर मुराद भोलेनाथ अवश्य पूरी करते हैं। पड़ोसी देश नेपाल के नुनथर पहाड़ व सुप्पी घाट बागमती नदी से जल लेकर कावंरियों का जत्था हलेश्वरनाथ महादेव का जलाभिषेक करने आते हैं। मंदिर प्रबंधन के सचिव सुशील कुमार के अनुसार, यहां स्थापित शिव¨लग अद्भुत व दक्षिण के रामेश्वरम से भी प्राचीन है। शिव¨लग की स्थापना खुद राजा जनक ने की थी। जनकपुर से विवाह के बाद अयोध्या लौट रही मां जानकी व भगवान श्रीराम ने भी इस शिव¨लग की पूजा की थी। पुरानों के अनुसार, इसी स्थान पर खुद भगवान शिव ने उपस्थित होकर परशुराम को शस्त्र की शिक्षा दी थी। इस मंदिर से जुड़ी आस्था लोगों में सदियों से बरकरार है और भगवान श्रीराम व माता जानकी ने इस शिव¨लग की पूजा-अर्चना की थी, जिससे इसकी महता काफी बढ़ गई। इसी स्थान से राजा जनक के हल चलाने के दौरान जगत जननी माता जानकी धरती से प्रकट हुई थीं। उसके बाद इस इलाके से अकाल का साया समाप्त हो गया। तभी से लोग सुख, समृद्धि, शांति, खुशहाली, पुत्र, विवाह व अकाल मृत्यु से बचने के लिए बाबा हलेश्वर नाथ का जलाभिषेक करते हैं। कैसे पहुंचें मंदिर सीतामढ़ी शहर से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित हलेश्वर स्थान। ऐसे तो सालोंभर श्रद्धालु दर्शन व जलाभिषेक को पहुंचते हैं। लेकिन, सावन मास और महाशिवरात्रि के अवसर पर महात्मय बढ़ जाता है। कहा जाता है कि राजा विदेह ने पुत्र यशती यज्ञ के अवसर पर भगवान शिव के एक मंदिर की स्थापना की थी। उनके मंदिर का नाम हेलेश्वरनाथ मंदिर रखा गया था। मंदिर का इतिहास : पुराणों के अनुसार, यह इलाका मिथिला राज्य के अधीन था। एक बार पूरे मिथिला में अकाल पड़ा था। पानी के लिए लोगों में त्राहिमाम मच गया था। तब ऋषि मुनियों की सलाह पर राजा जनक ने अकाल से मुक्ति के लिए हलेष्टि यज्ञ किया। यज्ञ शुरू करने से पूर्व राजा जनक जनकपुर से गिरमिसानी गांव पहुंचे और यहां अछ्वूत शिव¨लग की स्थापना की। राजा जनक की पूजा से खुश होकर भगवान शिव माता पार्वती के साथ प्रकट हुए और उन्हे आर्शीवाद दिया। यह मंदिर सीतामढ़ी का गौरव है। हलेश्वर स्थान बाबा का ऐसा मंदिर है जिसमें कोई भी मुरादें लेकर आप जाइए वह अवश्य पूरी हो जाती है। खासकर सावन मास में। इस मास में वैसे भी कहा गया है कि महादेव स्वयं कैलाश छोड़ पृथवी पर विराजमान हो जाते हैं। उसमें भी बिहार में। सीतामढ़ी में जगत जननी माता सीता का जन्म स्थान है इसलिए भोला बाबा उपस्थित रहते हैं। पं. अवधेश कुमार झा गाढ़ा, रुन्नीसैदपुर। राजा जनक ने इसी स्थान से हल चलाना शुरू किया और सात किमी की दूरी तय कर सीतामढ़ी के पुनौरा गांव में पहुंचे, जहां हल के सिरे एक घड़े में ठोकर लगने से मां जानकी धरती से प्रकट हुईं। उनके प्रकट होते ही घनघोर बारिश होने लगी और इलाके से अकाल समाप्त हुआ। पं. शिवशंकर झा डुमरा, सीतामढ़ी।

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