खटारा बसें और बदहाल व्यवस्था देख समझ लीजिए आ गए सरकारी बस स्टैंड
सीतामढ़ी। सरकारी बस और स्टैंड का जिक्र आते ही उसकी बदहाली जेहन में कौंधने लगती है।
सीतामढ़ी। सरकारी बस और स्टैंड का जिक्र आते ही उसकी बदहाली जेहन में कौंधने लगती है। सीतामढ़ी का बस अड्डा देखकर रोना आ जाएगा। खटारा सरकारी बसों की तरह स्टैंड भी बदहाली के दलदल से घिरा हुआ है। यात्री सेवा व सुविधाओं की बात ही बेमानी है। 1965 में यहां बस स्टैंड चालू हुआ। भूमि की दरकार पड़ी तो रेलवे की जमीन पर स्टैंड खड़ा हो गया। अब दूसरे की जमीन पर पक्का निर्माण भला कैसे हो सकता। भाड़े में मिला मकान जर्जर होकर ध्वस्त होने के कगार पर जा पहुंचा है। सुविधाएं भी बहाल नहीं हो पाईं। तब से किसी ने ध्यान नहीं दिया। बसें चलाने भर से वास्ता रहा। यात्री सेवा व सुविधा दरकिनार होकर रह गई। आलम यह कि बस स्टैंड में न बैठने की जगह बन पाई न पीने का पानी मयस्सर हो पाया। शायद ही यात्रियों को अपनी प्यास बुझाने के लिए एक गिलास पानी नसीब हो। स्टैंड में यात्रियों के बीच आवारा जानवर घूमते और गंदगी फैलाते रहते हैं। क्रमश: जारी..! यात्रियों के लिए प्रतीक्षालय ही सहारायात्रियों के ठहरने का एकमात्र स्थान प्रतीक्षालय ही दिखता है। यात्री इस उम्मीद से प्रतीक्षालय की तरफ कदम बढ़ाता है कि यहां पर हवा-पानी एवं बैठने की व्यवस्था होगी, लेकिन यहां पर जानवरों का कब्जा है। यात्री प्रतीक्षालय कचरे से पटा और अत्यंत जर्जर हालत में है। चारों तरफ फैली गंदगी के बीच यात्रियों को रुकना मजबूरी है। पूछताछ कार्यालय बंदबस स्टैंड में कई जिलों के लोग आते हैं। पूछताछ कार्यालय कहीं नजर नहीं आता। यात्रियों के लिए बस स्टैंड में एक भी ऐसा हेल्प काउंटर नहीं है, जहां से अलग-अलग रूट की जानकारी मिल सके। पूछताछ केंद्र न होने की वजह से काफी परेशानी होती है। यात्री प्रतीक्षालय में किराया-सूची न होने की वजह से यात्री किराये के नाम लुटते रहते हैं।