भारतीय सिनेमा से आम आदमी, भारतीय जीवन मूल्य और संस्कार गायब : विवेक अग्निहोत्री
मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन विभाग ने नेपॉटिज्म इन इंडियन ि
मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन विभाग ने ''''नेपॉटिज्म इन इंडियन सिनेमा : इश्यूज एंड कन्सर्न'''' विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया। मुख्य अतिथि प्रख्यात फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि समाज में पुरानी चली आ रही है रूढि़वादी और भ्रष्ट प्रथाएं जो विकास को रोकती है उन्हें बदलने के लिए आज भारत का युवा और जनमानस प्रयत्न कर रहा है। हम सब चाहते हैं आज भारत अपनी ताकत के साथ पूरे विश्व में आगे बढ़े। आज की फिल्मों से आम आदमी, भारतीय जीवन मूल्य और संस्कार या कहें तो पूरा का पूरा भारत ही गायब है। नेपोटिज्म की व्याख्या बाजार के नियम से की जाए। इसे समाज के नियम से देखा जाए। देश की उन्नति के नियम से देखा जाए। जिसको मौका मिलना चाहिए? उसे इसलिए मौका नहीं मिलता है, क्योंकि वह किसी की चमचागिरी नहीं करता है या भाई-भतीजावाद में नहीं आता है। जिसको आगे बढ़ाने के लिए कंधे पर किसी का हाथ नहीं है वह अपने जीवन में वंचित रह जाता है और उसको जहां पहुंचना चाहिए? वहां नहीं पहुंच पाता। कहा कि बॉलीवुड में नेपोटिज्म का मतलब यह नहीं है कि आप अपने बेटे या बेटी को काम देते हैं। उसमें कुछ गलत बात नहीं है। अगर बेटे में काबिलियत है तो उसे मौका मिलना चाहिए। समस्या तब आती है जब आप अपने बेटे और बेटी के करियर को बढ़ाने के लिए जब उसमें काबिलियत नहीं है तब किसी और समर्थ मेरिट वाले लड़के और लड़की को आगे नहीं बढ़ने देते। अगर वह आगे बढ़ता है तो उसके कॅरियर को खत्म करने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं। इसे ही नेपोटिज्म बोला जाता है। कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि भाई-भतीजावाद हर क्षेत्र में है, लेकिन यह जितना व्यापक रूप से फिल्म इंडस्ट्री में है और जितने ज्यादा लोगों को प्रभावित करता है उतना किसी अन्य क्षेत्र में नहीं करता है। मुख्य वक्ता डेकिन यूनिवर्सिटी, आस्ट्रेलिया के फिल्म एवं टेलीविजन विभाग के निदेशक प्रोफेसर विक्रांत किशोर ने कहा नेपॉटिज्म हर क्षेत्र में है। व्यापार में है, राजनीति में है, लेकिन बॉलीवुड को टारगेट किया जा रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय नोएडा केंद्र के पूर्व निदेशक प्रोफेसर बीएस निगम ने कहा कि नेपॉटिज्म को फिल्म इंडस्ट्री के संपूर्णता में देखना चाहिए। फिल्म इंडस्ट्री में देखें तो नेपोटिज्म की शुरुआत मोनोपोली से होती है। गौर करें तो वैसे प्रोड्यूसर अब नहीं हैं, जो फिल्म किसी मकसद के साथ प्रोड्यूस करते थे। जब फिल्म इंडस्ट्री ना होकर मकसद था और अब पूर्णत: फिल्म इंडस्ट्री बन गया है। इसमें फाइनेंसिग बहुत बड़ा फैक्टर है। वेबीनार के निदेशक मीडिया अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रशांत कुमार ने संगोष्ठी के उद्देश्यों व रूपरेखा पर चर्चा की। प्रश्नोत्तर सत्र में भी हुआ जिसमें वक्ताओं ने प्रतिभागियों के शंकाओं का निवारण किया। कार्यक्रम का संचालन संयोजक डॉ. साकेत रमण व धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर डॉ. सुनील दीपक घोड़के ने दिया। अंतरराष्ट्रीय वेबीनार के आयोजन सचिव मीडिया अध्ययन विभाग के सह-प्रोफेसर डॉ. अंजनी कुमार झा, आयोजन सह-सचिव सहायक प्रोफेसर डॉ. परमात्मा कुमार मिश्रा और सह-संयोजक सहायक प्रोफेसर डॉ उमा यादव थीं। मौके पर शैफालिका मिश्रा, दीपक दिनकर समेत अन्य कर्मचारी, शोधार्थी और विद्यार्थी सम्मिलित रहे। इस अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में देश के 20 राज्यों के प्रतिभागी व मोरैक्को, रशियन फेडरेशन, मलेशिया, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया समेत 11 देशों प्रतिभागी सम्मिलित हुए।