दशकों से चचरी के सहारे रेंग रही जिदगी
जिले के अंतिम छोड़ ही नहीं विकास के अंतिम पायदान पर खड़े चोरौत प्रखंड के भंटाबारी पंचायत के लोग दशकों से उपेक्षित जिदगी जीने को विवश है।
सीतामढ़ी। जिले के अंतिम छोड़ ही नहीं विकास के अंतिम पायदान पर खड़े चोरौत प्रखंड के भंटाबारी पंचायत के लोग दशकों से उपेक्षित जिदगी जीने को विवश है। चोरौत में मरहा नदी की मार झेलते मिसरिया गांव के लोग आजादी के बाद से अब तक एक अदद पुल के लिए तरस कर रह गए है। चुनाव दर चुनाव लोग इस उम्मीद में मतदान करते रहे कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि उनके दर्द को समझेंगे और दर्द से निजात दिलाने की पहल करेंगे। लेकिन चुनाव जीतने के बाद नेताओं को मिसरिया गांव के लोगों की सुध तक नहीं रही। पिछले चुनाव में भी नेताओं ने पुल निर्माण के वादे किए थे, लेकिन वर्तमान में गांव की जो तस्वीर है, वह नेताओं के वादों की सच्चाई और विकास के दावों की पोल खोलती है। हजारों की आबादी वाले मिसरिया टोल से होकर मरहा नदी गुजरती है। बाढ़-बरसात के दिनों में यह गांव टापू में बदल जाता है। आम दिनों में लोग सामूहिक रूप से चंदा इकट्ठा कर चचरी पुल बनाते है। इसी चचरी के सहारे लोग जिदगी को रफ्तार देते है। वैसे तो इलाका पूरी तरह विकास की रोशनी से अनजान है, लेकिन पुल के अभाव में लोगों की जिदगी कुछ ज्यादा ही बदहाल है। बच्चों को स्कूल भेजना हो या बीमार को अस्पताल पहुंचाना। सब कुछ राम भरोसे है। गांव में जबकि किसी की शादी होती है तो वर वधू को पैदल ही आना-जाना पड़ता है। वर्तमान मे ग्रामीणों ने श्रमदान कर 60 फीट लम्बा चचरी का निर्माण किया है। वार्ड सदस्य सीताराम मुखिया, सोनेलाल मुखिया, विलास मुखिया, सर्वजीत मुखिया, रामलखन मुखिया, सुमा देवी, मनतोरिया देवी और मरनी देवी के अनुसार वह किसी गांव में नहीं बल्कि जंगल में जीने को मजबूर है। बुनियादी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। दशकों से एक पुल की मांग कर रहे है लेकिन न नेता को चिता और नहीं प्रशासन को ही कोई सुध।