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स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा गाजर घास

खेत-खलिहान सड़क किनारे खाली पड़े फ्लैट से लेकर यत्रतत्र स्थानों पर उगने वाली घास को अगर आप मात्र जंगली पौधा मानकर हल्के में ले रहे हैं तो सावधान हो जाइए।

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 12:10 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 06:05 AM (IST)
स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा गाजर घास
स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा गाजर घास

सीतामढ़ी। खेत-खलिहान, सड़क किनारे, खाली पड़े फ्लैट से लेकर यत्रतत्र स्थानों पर उगने वाली घास को अगर आप मात्र जंगली पौधा मानकर हल्के में ले रहे हैं तो सावधान हो जाइए। यह गाजर घास है। यह विदेशी घास पशु, मानव के स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि, पर्यावरण को भी आघात पहुंचा रहा है। इसके के स्पर्श मात्र से ही खुजली, एलर्जी और चर्म रोग जैसी गंभीर बीमारियां पैदा हो सकती है। यह एक शाकीय पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेजी से उगकर मनुष्य के अलावा प्रकृति और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बनती जा रही है। देशव्यापी पहचान है इस गाजर घास की : इस घास का वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम है। अलग-अलग प्रजाति में बंटे गाजर घास को कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी आदि नामों से पहचान मिली है। बताया जाता है कि यह घास 1955 में भारत में अमेरिका से भारी मात्रा में गेहूं का आयात हुआ। जिसमें पारथ्रेनियम के बीज भी भारत को सौगात के रूप में मिल गया। तब से हर गली-मोहल्ले में फैल चुका है। पानी मिलने पर वर्ष भर फल फूल सकती है। लेकिन वर्षा ऋतु में इसका अधिक अंकुरण होने पर यह तेजी से बढ़ता है। यह 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेती है। एक वर्ष में इसकी 3-4 पीढि़यां पूरी हो जाती है। इसकी लंबाई 1-2 मीटर, तना रोएंदार और अत्यधिक शाखा युक्त होता है। इसके एक पौधे से 25000 तक बीज उत्पन्न हो जाते है। हर तरह से घातक है यह वानस्पतिक घास : गाजर घास खाद्यान्न फसल, उद्यान और सब्जियों में भी अपना स्थान बना रहा है। यह जैव विविधता एवं पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है। इससे मनुष्य में त्वचा संबंधी रोग, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि बीमारियां हो जाती है। पशुओं के लिए भी यह खरपतवार अत्यधिक विषाक्त होता है, दुधारू पशु दूध देना बंद कर देते हैं। इसके तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियां खत्म हो रही है और फसलों की उत्पादकता में भी कमी आने की वजह है। कैसे करें इसे खत्म, कहते है वैज्ञानिक : कृषि विज्ञान केंद्र के ़फसक वैज्ञानिक सचिदानंद प्रसाद बताते हैं कि इसेनष्ट करने के लिए इसे फूल आने से पहले ही जड़ से उखाड़ कर खत्म देना चाहिए। उखाड़ने से पहले हाथों में दस्ताने अवश्य पहनें। इसे जड़ से न उखाड़कर दरांती से काटने से पार्थेनियम तेजी से बढ़ता है, इसलिए इसे जड़ से उखाड़कर डीकम्पोजर स्प्रे करने के 60 दिनों के बाद गुणवत्ता युक्त कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाया जा सकता है। नियंत्रण का दूसरा तरीका रासायनिक खरपतवार नाशक ग्लायफोसेट 15 मिली. लीटर प्रति लीटर पानी या मेट्रिब्युजीन 5 मिली. लीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल का छिड़काव करने से नष्ट हो जाता है। जैविक नियंत्रण अंतर्गत जाइगोग्रामा बाईकोलोरटा नामक कीट घास पर छोड़ देने से पूरा खाकर नष्ट कर देता है।

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