भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक सामा चकेवा शुरू
इलाके में भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक सामा चकेवा का पर्व शुरू हो गया है।
सीतामढ़ी। इलाके में भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक सामा चकेवा का पर्व शुरू हो गया है। बथनाहा प्रखंड के सहियारा, छौरहिया, माधोपुर, मझौलिया, बथनाहा, दिघी, महादेव, पुरनहिया, कोदरकट व ¨सगरहिया सहित अन्य इलाकों के विभिन्न जगहों पर सामा-चकेवा के गीत आजकल गूंज रहे हैं। भाई-बहन के बीच स्नेह और प्रेम को दर्शाने वाला यह त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि से प्रारंभ होकर पूर्णिमा को समापन किया जाता है। इसका वर्णन पुराणों में भी मिला है। कहते हैं कि सामा कृष्ण की पुत्री थी जिसपर अवैध संबंध का गलत आरोप लगाया गया था। जिस कारण सामा के पिता कृष्ण ने गुस्से में आकर मनुष्य से पक्षी बन जाने की सजा दे दी। लेकिन अपने भाई चकेवा के प्रेम और त्याग के कारण वह पुन: पक्षी से मनुष्य के रूप में गई। चुंगला करे चुंगली बिलैया करे म्याऊ म्याऊ, चुंगला के जीभ नोचि नोचि खांऊ। सामा खेले गेली चकवा भैया अंगना कनिया भौजी देलिन लूलू आईन। सामा-चकेवा की ऐ गीत इस खेल त्योहार की प्रसिद्ध गीत है। और इस गीत के बोल भी इन दिनों सहियारा के आस पास संध्या को काफी दूर -दूर तक सुनाई दे रहा है। सहियारा वार्ड 07 निवासी शिक्षिका शिवानी कुमारी, बदुरी गांव निवासी सुषमा कुमारी ग्रामीण सेवा निवृत्त शिक्षक पंडित पारस नाथ चौधरी सुबोध मिश्र आदि बताते हैं इस त्योहार को देखकर अहसास होता है। तेज रफ्तार भरी ¨जदगी व आर्थिक युग मे भी रिश्ते की डोर कहीं ज्यादा मजबूत है। यही मिथिला की भाषा व संस्कृति की पहचान है। शाम ढलते ही युवती और महिलाएं अपनी सहेलियों की टोली में मैथिली लोक गीत गाती हुई अपने-अपने घरों से निकलती है। उनके हाथों में बांस की बनी टोकरी रहती है। टोकरियों में मिट्टी से बनी सामा -चकेवा की मूर्तियां, पक्षियों की मूर्ति एवं चुंगला की मूर्तियां रखी जाती है।