अपने ही घर में बेगानी बनी ¨हदी
भारत की राष्ट्रभाषा ¨हदी है, लेकिन अपने ही देश में ¨हदी बेगानी होने लगी है।
सीतामढ़ी। भारत की राष्ट्रभाषा ¨हदी है, लेकिन अपने ही देश में ¨हदी बेगानी होने लगी है। सरकारी कार्यालय में पत्राचार की बात हो या फिर बाजार में उपलब्ध महत्वपूर्ण पुस्तकें, ¨हदी भाषा में नहीं मिल रही हैं। ¨हदी भाषी भी अंग्रेजी बोलकर अपने आप को गौरवान्वित कर रहे हैं। ऐसे में ¨हदी का दिन प्रतिदिन ह्रास हो रहा है। आधुनिकता के इस दौर में पढ़ाई भी लोग शिक्षा के लिए नहीं बल्कि, ऊंचे मुकाम के लिए करते हैं। लिहाजा ¨हदी अपने ही देश में बेगानी होती जा रही है।
सरकारी-गैर सरकारी कार्यालय, मेडिकल व इंजीनिय¨रग संस्थान, बहुराष्ट्रीय कंपनी व न्यायालयों में अंग्रेजी छाया हुआ है। हाईटेक क्रांति के इस दौर में हर जगह अंग्रेजी सिरमौर बन गया है, जबकि ¨हदी हर जगह पिछड़ कर रह गई है। ¨हदी की याद केवल दिवस विशेष तक ही सिमट कर रह गई है। बोले साहित्यकार ::
¨हदी हमारी राष्ट्र भाषा है। इस पर हमे गर्व है, परंतु यह दुखद स्थिति है कि इसे हमारे देश की आजादी के 72 साल बाद भी राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं हो सका। आज भी हम अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम हैं। हमारे देश के केंद्रीय कार्यालयों व न्यायपालिकाओं में अंग्रेजी का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। दक्षिण-पूर्व के कुछ राज्यों में ¨हदी के विरोध में आंदोलन हुए। क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हो, इस पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन, ¨हदी का विरोध न कर संवैधानिक भाषा का दर्जा देकर उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक इसका संपूर्ण भाषा के रूप में विकास आवश्यक है। तभी ¨हदी भाषा राष्ट्र की ¨बदी बन सकेगी। 14 ¨सतबर 1949 को ¨हदी राजभाषा के रूप में आई, लेकिन सामाजिक, राजनीतिक व शैक्षणिक स्तर इसका विकास नहीं हो सका। सरकारी कार्यालय में कार्य का माध्यम ¨हदी हो, न्यायालय में ¨हदी का उपयोग अनिवार्य हो। ¨हदी करोड़ों लोगों की मातृभाषा है। लेकिन, आज हर जगह अंग्रेजी ही सिरमौर बनी है।
- उमा शंकर लोहिया साहित्यकार। बोले प्राध्यापक ::
आज डिजीटल वर्ल्ड सबके जीवन में एक बड़ी भूमिका पैदा कर रहा है और करने वाला है। बाप-बेटा, पति-पत्?नी भी वाट्सएप पर संदेश भेजा करते हैं। ट्विटर पर लिखते हैं कि शाम को क्?या खाना खाना है। इन सब वार्तालाप हेतु ¨हदी का प्रयोग कर ¨हदी को समृद्ध कर सकते हैं। उसने अपना प्रवेश कर लिया है। जो तकनीक जानकार हैं, उनका कहना है कि आने वाले दिनों में तीन भाषाओं का दबदबा रहने वाला है - अंग्रेजी, चाइनीज, हिन्?दी। और जो भी तकनीक से जुड़े हुए हैं उन सबका दायित्?व बनता है कि हम भारतीय भाषाओं को भी और हिन्?दी भाषा को भी तकनीक लिए किस प्रकार से परिवर्तित करें। जितना तेजी से इस क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ हिन्?दी भाषा के नए सॉफ्टवेयर तैयार करके, नए एप्स तैयार करके जितनी बड़ी संख्या में लाएंगे। तब ये अपने आप में भाषा एक बहुत बड़ा बाजार बन जाएंगी। किसी ने सोचा नहीं होगा कि भाषा एक बहुत बड़ा बाजार भी बन सकती है। आज बदली हुई तकनीक की दुनिया में भाषा अपने आप में एक बहुत बड़ा बाजार बनने वाली है। हिन्?दी भाषा का उसमें एक माहात्म्य रहने वाला है। हमारे डिजीटल दुनिया को, इंटरनेट को हमारी हिन्दी से परिचित करवाएंगे और भाषा के रूप में लाएंगे, हमारा प्रसार भी बहुत तेजी से होगा, हमारी ताकत भी बहुत तेजी से बढ़ेगी और इसलिए भाषा का उस रूप में उपयोग होना चाहिए।
:- डॉ. बबीता कुमारी, प्राध्यापक।