Move to Jagran APP

पहले लगा चुके नक्‍सलियों की क्‍लास, अब कश्मीरी पत्थरबाजों को पढ़ाएंगे शांति का पाठ

बिहार के एक प्रोफेसर ने सीरहनीय पहल की है। उन्‍होंने पहले नक्‍सलियों को शांति व अहिंसा का पाठ पढ़ाया। अब वे कश्मीरी पत्थरबाजों को शांति का पाठ पढ़ाने जा रहे हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 09:38 PM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2018 08:06 PM (IST)
पहले लगा चुके नक्‍सलियों की क्‍लास, अब कश्मीरी पत्थरबाजों को पढ़ाएंगे शांति का पाठ
पहले लगा चुके नक्‍सलियों की क्‍लास, अब कश्मीरी पत्थरबाजों को पढ़ाएंगे शांति का पाठ
शेखपुरा [अरविंद कुमार]। कश्मीर के युवक मजहब के नाम पर गुमराह किए जा रहे हैं। उन्हें पत्थरबाज बनाने वाले राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में फंसाकर उनकी जिदंगी बर्बाद कर रहे हैं। जब नक्सलियों के बीच पाठशाला लगाकर उन्हें हिंसा से होने वाली हानि के बारे में बताकर-समझाकर मुख्यधारा में लौटाया जा सकता है तो घाटी के भटक रहे युवकों को क्यों नहीं सुधारा जा सकता? यह कहना है शेखपुरा (बिहार) के प्रोफेसर अजय का। वे नक्सलियों को समझाने में एक दशक से लगे हैं। अब वे कश्मीर में पत्थरबाजों की पाठशाला लगाएंगे।

शेखपुरा के संजय गांधी स्मारक महिला कॉलेज में प्रो. अजय अपने मिशन समाज सुधार में पिछले 12 वर्षों से लगे हुए हैं। वे नक्सलियों के गढ़ में जाकर उन्हें महापुरुषों के सत्य और अहिंसा के सिद्धांत का पाठ पढ़ा चुके हैं। वे 2006 से इस नेक काम में लगे हैं। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र के कई इलाकों में कैंप कर दर्जनों नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटा चुके हैं। वे बिना किसी प्रचार-प्रसार के यह काम कर रहे हैं।
विवेकानंद बने प्रेरणास्रोत
2002 में उन्होंने स्वामी विवेकानंद की पुस्तकों का अध्ययन किया। विवेकानंद के जीवन के बारे में पढऩे के बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ। प्रो. अजय ने बताया कि इस काम में लगने पर बाधाएं भी सामने आईं। 2007 में एक नक्सली ने उन्हें फोन पर बुरा अंजाम भुगतने की धमकी दी थी। मगर वे नहीं डिगे।
प्रो.अजय अपने मिशन को देशव्यापी बनाने में लगे हैं। वह छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के दुर्ग सुकमा, बिलासपुर, रायपुर तथा महाराष्ट्र के नागपुर व चंद्रपुर आदि नक्सल प्रभावित जिलों में महीने-महीने गुजारकर नक्सलियों को अहिंसा व शांति का पाठ पढ़ा चुके हैं।
नया मिशन है कश्मीर
प्रो.अजय कश्मीर की स्थिति को ङ्क्षचताजनक मानते हैं। वे कहते हैं कि उनके नए मिशन में कश्मीर के गुमराह युवाओं को मुख्यधारा में लौटाने का प्लान है।  वे कश्मीर के आतंक प्रभावित जिलों में जाकर वहां के युवकों को हिंसा का रास्ता छोडऩे के लिए प्रेरित करेंगे। प्
रो. अजय कहते हैं कि वे बाकायदा अपने मिशन के बारे में सरकार और प्रशासन को लिखित सूचना देते हैं, सुरक्षा की मांग करते हैं, लेकिन कोई सुख-सुविधा न मिलने पर भी अपनी मंजिल नहीं छोड़ते। 2010 में वे जब मिशन में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा गए तो वहां प्रशासन ने उन्हें नक्सलियों से मिलने को जंगल जाने से रोक दिया और कोई सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। इसके बावजूद दंतेवाड़ा के जंगलों में जाकर नक्सलियों के बीच अहिंसा की पाठशाला लगाईं। उनको सुनने के लिए बड़ी संख्या में नक्सली जुटे तो उनके हौसलों को पंख लग गए। अब कश्मीर जाने की उन्होंने तैयारी कर ली है।
उन्हें मलाल है कि उनके अच्छे कामों की लोग प्रशंसा तो करते हैं, पर आर्थिक मदद को आगे नहीं आते। फिलहाल वित्तरहित कॉलेज में पढ़ाकर उन्हें जो कुछ मिल रहा है, उससे सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.