वक्त बदलते ही गन्ने की मिठास हुई कम, उत्पादन में कमी
शिवहर । एक वह दौर भी था जब गन्ना इलाके के किसानों के लिए न केवल नगदी फसल बल्कि उनकी जिदगी में मिठास का प्रतीक था।
शिवहर । एक वह दौर भी था जब गन्ना इलाके के किसानों के लिए न केवल नगदी फसल बल्कि उनकी जिदगी में मिठास का प्रतीक था। लेकिन, समय गुजरते ही गन्ने की खेती पर व्यवस्था का ग्रहण लगता गया और गन्ने की मिठास फीकी होती गई। समय से भुगतान नही होने की वजह से किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग होता गया। साल दर साल किसान गन्ने की खेती छोड़ते रहे। साल 2000 तक इलाके के 65 हजार एकड़ रकवे में गन्ने की खेती होती थी। तब चीनी मिल द्वारा किसानों को उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए जाते थे। समय-समय पर किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता था। लेकिन बदलते दौर में किसानों को मिलने वाले सुविधाएं चीनी मिल द्वारा बंद कर दी गई। इसका कारण मिल का घाटे में जाना रहा। यही वजह हैं कि साल 2010 में यह घटकर 45 हजार एकड़ हो गई। जबकि, अब यह घटकर 14-15 हजार एकड़ हो गई है। पहले 65 हजार किसान गन्ने की खेती करते थे, अब इनकी संख्या 40 हजार रह गई है। पहले गन्ने का उत्पादन पहले 65 से 70 लाख क्विंटल होता था। इस साल महज 11 लाख क्विटल पर सिमट कर रह गया है। अब जबकि, इस सत्र में रीगा चीनी मिल में पेराई सत्र शुरू नहीं हो सका है, अगले सीजन के लिए गन्ने की खेती करने के लिए किसान हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है। गन्ने का उत्पादन पहले 65 लाख क्विंटल होता था। अब उत्पादन 14 लाख क्विंटल तक रह गया है। किसान संगठन समेत किसान शिवजी राय व अरविद प्रसाद आदि का कहना हैं कि, सरकार किसान-मजदूर तथा राज्य हित में दबाव बनाकर मिल को किसी अच्छे खरीदार से बिकवा कर या अधिग्रहण कर चलवा सकती है।
बताते चलें कि, चीनी मिल प्रबंधन का किसानों और मजदूरों की टकराव की वजह से इस बार रीगा चीनी मिल का संचालन नहीं हो सका। इसके चलते खेतों में लाखों क्विंटल गन्ना बर्बाद हो गया।