आयुर्वेदिक अस्पतालों में डाक्टर-कंपाउंडर की जगह रहते सांप-बिच्छू
शिवहर। जिन अस्पतालों में चिकित्सक और कर्मियों को रहना चाहिए वहां अब सांप-बिच्छू और चूहे रहते है।
शिवहर। जिन अस्पतालों में चिकित्सक और कर्मियों को रहना चाहिए वहां अब सांप-बिच्छू और चूहे रहते है। जहां इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए, वहां गोदाम बन गया है। चिकित्सक का कक्ष बेडरूम बन गया है। चिकित्सक और कर्मी का अभाव, दवा और संसाधन की कमी के बीच शिवहर की आयुर्वेदिक अस्पतालें खुद व्यवस्था के संक्रमण की शिकार बन गई है। देखभाल के अभाव और प्रशासनिक उदासीनता के चलते अस्पताल भवन जर्जरता की शिकार बन गई है। शिवहर जिले में कहने को चार आयुर्वेदिक अस्पतालें है। लेकिन सभी की तस्वीर एक ही है। चारों अस्पताल बदहाल व्यवस्था की निशानी बनकर रह गई है। दवा और इलाज की व्यवस्था नहीं होने के चलते अक्सर अस्पतालें बंद रहती है। वैसे भी सरकार ने चार अस्पतालों के लिए दो डॉक्टर और दो अनुसेवी की ही तैनाती कर रखी है। कंपाउंडर और अन्य महत्वपूर्ण पद खाली है। हैरत की बात यह कि, कोरोनाकाल में आयुर्वेद की बढ़ी अहमियत के बावजूद इन अस्पतालों की तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आ सका है। मामले को लेकर पूर्व जिला पार्षद अजब लाल चौधरी ने डीडीसी को आवेदन दिया है। साथ ही चारों अस्पतालों की व्यवस्था को सु²ढ़ करते हुए चिकित्सक और कर्मी की तैनाती कर अस्पताल का संचालन कराने की मांग की है। जिले में चार आयुर्वेदिक अस्पताल है। डुमरी कटसरी के नयागांव, तरियानी के माधोपुर छाता, शिवहर के रामपुर यदु व पुरनहिया प्रखंड के पुरनहिया में दशकों पूर्व इन अस्पतालों की स्थापना की गई थी। इसके संचालन की जिम्मेदारी जिला परिषद के जिम्मे थी। लेकिन, अब चारों अस्पताल खुद बीमार होकर रह गए है और आम जनता को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने में नकारा साबित हो रहे है। नयागांव में स्थापित अस्पताल का भवन जर्जर हो गया है। यहां सांप-बिच्छू ने बसेरा बना लिया है। अस्पताल के कमरे को गोदाम और शयन कक्ष बना लिया है। चिकित्सक और कर्मी अक्सर गायब मिलते है। 35 साल पूर्व तरियानी प्रखंड के माधोपुर छाता में स्थापित राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय का अस्तित्व खत्म हो गया है। कुछ ऐसा ही हाल रामपुर यदु स्थित आयुर्वेदिक चिकित्सालय व
पुरनहिया प्रखंड के पुरनहिया में वर्ष 1942 में आयुर्वेदिक अस्पताल का रह गया है।