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न खाने को अन्न और तन ढकने को वस्त्र, वृद्ध दिव्यांग को सहायता की दरकार

हित परहित हिताई मिताई जात छोड़ देला जब समय होला कमजोर त हर कोई साथ छोड़ देला। यह चर्चित गीत दोनों पैर से लाचार 80 वर्षीय दिव्यांग रामेश्वर राय पर सटीक बैठती है। एक तो ईश्वर ने दिव्यांग बना मजाक किया दूसरी ओर अपनों ने किनारा कर लिया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 12:52 AM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 05:05 AM (IST)
न खाने को अन्न और तन ढकने को वस्त्र, वृद्ध दिव्यांग को सहायता की दरकार
न खाने को अन्न और तन ढकने को वस्त्र, वृद्ध दिव्यांग को सहायता की दरकार

शिवहर । हित परहित हिताई मिताई जात छोड़ देला जब समय होला कमजोर त हर कोई साथ छोड़ देला''। यह चर्चित गीत दोनों पैर से लाचार 80 वर्षीय दिव्यांग रामेश्वर राय पर सटीक बैठती है। एक तो ईश्वर ने दिव्यांग बना मजाक किया, दूसरी ओर अपनों ने किनारा कर लिया। वह महावीर स्थान मोहनपुर के पुस्तकालय भवन में एक माह से रह रहे है। न खाने की व्यवस्था है और नहीं कोई दर्द बांटने वाला है। जैसे-तैसे वह घसीट-घसीट कर दैनिक कर्म करते है। वहीं आते-जाते लोगों को उम्मीद भरी नजरों से देखते है। लेकिन अबतक किसी ने दर्द बांटने की कोशिश तक नहीं की है। स्थानीय लोग बताते है कि रामेश्वर राय जन्मजात दिव्यांग है। इसके चलते उनकी शादी भी नहीं हुई। वह पशु मालिकों के पशुओं की देखभाल कर अपना पेट चलाते थे। सात साल पहले इकलौती बहन सीतामढ़ी जिले के मेजरगंज प्रखंड के डायनकोठी स्थित अपने घर ले गई थी। लेकिन बहन की मौत के बाद भांजे ने रामेश्वर राय को मोहनपुर लाकर छोड़ दिया। न रहने को घर है और न खाने को अन्न। फटे हुए कपड़े से कभी तन ढ़कते है तो कभी इन कपड़ों को बिस्तर बना लेते है। गांव के लोग कुछ दे देते है तो खा लेते है। वर्ना भूखे रह जाते है। बहरहाल, रामेश्वर राय को इंतजार है किसी मसीहा या स्वयंसेवी संगठन की, जो इनके दर्द पर मरहम लगा सके।

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