गांवों की तस्वीर बदल रहे मनरेगा श्रमिक
कोरोना काल में भय और भरोसा का समन्वय दिख रहा।
शिवहर। कोरोना काल में भय और भरोसा का समन्वय दिख रहा। लॉकडाउन को लेकर बड़ी तादाद में प्रवासी श्रमिक अपने गांव लौटे हैं। घर- वापसी का क्रम अभी भी जारी है। खाली हाथ लौटे उन श्रमिकों को लेकर न सिर्फ सरकार वरन स्थानीय लोग भी चितित हैं कि इन हाथों को काम कहां और कैसे मिलेंगे।
कोरोना और लॉकडाउन से उत्पन्न दुíदन में जहां हर आमो ़खास को कल्ह की चिता सता रही श्रमिकों के लिए मनरेगा योजना किसी वरदान से कम नहीं। इसके साथ ही वर्षों विभिन्न प्रदेशों में अपना श्रम खपाने वाले श्रमिक अपने गांव की सूरत निखार अपना कल्ह सुरक्षित कर रहे। पहचान खो चुके मृतप्राय पोखरों की उड़ाही से उनमें जीवंतता लौट रही। वहीं बाल सुंदर सहित अन्य नालों की उड़ाही से प्राकृतिक जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित किया जा रहा। इतना ही नालियों के निर्माण सहित सुस्त पड़ गए नल जल योजना कार्य में रफ्तार दिख रही। बहुत सी ग्रामीण सड़कें जो जर्जर हो चुकी थीं चकाचक हुई जा रही। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस वैश्विक महामारी में भय के बीच विकास का भरोसा बढ़ता जा रहा। गांव की नित नई तस्वीर सामने आ रही। सैकड़ों की संख्या में पुरुष/ महिला मजदूर जब काम कर रहे होते हैं तो वह ²श्य रोजगार के साथ विकास का प्रमाण मालूम पड़ती है।
इस सत्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सिर्फ मनरेगा से हर प्रवासी को रोजगार उपलब्ध होना संभव नहीं लेकिन बहुतायत संख्या में लोगों को काम जरुर मिल रहा। जरुरत है कि वर्तमान में जो श्रम शक्ति अपने यहां लौटी है उसका कुशलता से उपयोग किया जाए जिसके सुखद और दूरगामी परिणाम दिखाई देंगे।
वर्जन:
प्रवासी श्रमिकों के सहयोग से मनरेगा योजना के कार्यों में गुणात्मक वृद्धि आई है। करीब पचास सरकारी एवं निजी पोखरों की उड़ाही का काम चल रहा। वहीं नालों की भी उड़ाही हो रही। नल जल के शेष काम को भी पूरा किया जा रहा। यह अप्रत्यक्ष रुप में सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल- जीवन- हरियाली को धरातल पर उतारने में सहायक सिद्ध हो रहा।
मो. वारिस खान
डीडीसी, शिवहर।