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शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा में पिछड़ा है कुअमा गांव

शिवहर। कहते हैं भारत गांवों का देश है। भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है। गांवों को शहर जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। वहीं सड़कें बिजली शुद्ध पेयजल सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं से लैस किया जाएगा। इस तरह के अल्फाज अक्सर सुनने को मिलते हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 Oct 2019 12:24 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 06:16 AM (IST)
शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा में पिछड़ा है कुअमा गांव
शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा में पिछड़ा है कुअमा गांव

शिवहर। कहते हैं भारत गांवों का देश है। भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है। गांवों को शहर जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। वहीं सड़कें, बिजली, शुद्ध पेयजल, सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं से लैस किया जाएगा। इस तरह के अल्फाज अक्सर सुनने को मिलते हैं। इन बातों में कितनी सच्चाई है? क्या सचमुच गांव आज शहर में तब्दील हो गया है। लोगों को सहजता से बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं? इसकी पड़ताल करने को दैनिक जागरण की टीम पिपराही प्रखंड के कुअमा गांव पहुंची। गांव की पाती अभियान के तहत ग्रामीणों की चौपाल सजी। जहां बेलौस मौजूदा हालात बयां करने की छूट थी। ग्रामीणों ने जब समस्याएं गिनाईं तो लगा कि देश की बहुसंख्य आबादी जो गांवों में निवास करती है को आज भी आवश्यक संसाधनों का अभाव है। जहां सड़क, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा तीनों ही लचर हालत में है। जिले की पूर्वोतर सीमा पर बसा यह गांव चिकित्सा के लिए आज भी दस किलोमीटर की दूरी तय करता है। सड़कें ऐसी कि कितने मरीज तो रास्ते में काल के गाल में समा जाते हैं। प्रसूती महिलाओं की हालत स्वयं से समझने की जरूरत है। यह हाल तब है जबकि गांव में एपीएचसी को पीएचसी में अपग्रेड कर दिया गया है। जहां महज एक एएनएम दिखती हैं। यदा कदा डॉक्टर साहब भी दिखते हैं लेकिन यहां न तो दवा मिलती है और न ही उचित परामर्श मिल पाता है।

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शिक्षा की बात करें तो गिनती करने को गांव में एक प्राथमिक, तीन मध्य विद्यालय हैं। जिसमें दो नवसृजित विद्यालय को टैग किया गया है। वहीं इकलौते उच्च विद्यालय में करीब चार सौ बच्चे नामांकित हैं जिन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की जिम्मेदारी महज दो शिक्षकों को दी गई है। आलम यह कि बच्चों के बैठने को मुकम्मल जगह नहीं है। अतिरिक्त वर्ग कक्ष निर्माण के लिए तीन वर्ष पहले गड्ढे खोदे गए कितु निर्माण कार्य आज तक नहीं हुआ। किसानों की सबसे बड़ी समस्या उत्पादित ईंख की ढुलाई है। बिधी में पुल निर्माण नहीं होने से दस किलोमीटर का चक्कर लगा लोग रीगा चीनी मिल पहुंचते हैं।

बिजली की बात चली तो लोगों ने बताया कि यह बस आती जाती चीज बनी है। जर्जर तार एवं पोल कभी भी बड़े हादसे का सबब बन सकते हैं। बारहा विभाग से गुहार लगाई जा चुकी है मगर नतीजा सिफर है। इसमें परेशानी यह है कि कुअमा को पड़ोसी जिला के रीगा फीडर से विद्युत आपूर्ति की जाती है। जबकि प्रखंड मुख्यालय पिपराही में फीडर मौजूद है।

मौजूद ग्रामीणों ने बताया कि सरकारी आंकड़ों में भले ही गांव की तस्वीर बदल गई हो लेकिन धरातल पर कुअमा गांव आज भी अपेक्षित विकास से वंचित है। जबकि सीमाई गांव होने से इसे और भी चकाचक एवं सुविधासंपन्न होना चाहिए था, जो नहीं है। गांव के पूर्व मुखिया सह मुखिया संघ के पूर्व जिलाध्यक्ष संजय कुमार वर्मा उर्फ डब्बू बताते हैं कि गांव को अभी और विकास की दरकार है जो नहीं हो रहा। जीवन की मूलभूत जरूरतें मसलन सड़क, शिक्षा स्वास्थ्य, बिजली की समुचित व्यवस्था के बगैर विकास की बात बेमानी सी लगती है। यहां एक बड़ी समस्या सुरक्षा की भी है। जिले का बॉर्डर होने एवं आसपास पुलिस केंद्र नहीं होने से अवांछित तत्वों का भय बना रहता है। पूर्व में कई बड़ी घटनाएं भी घटी हैं। ऐसे में यहां पुलिस ओपी का होना बेहद जरूरी है। इस विषयक मांग कब से क्षेत्रवासी कर रहे हैं। इस बिदु पर जिला एवं पुलिस प्रशासन को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। ताकि यहां के लोग निर्भीकता से जीवन यापन कर सकें। बिधी में पुल बन जाने से विकास की गति तेज हो जाएगी। आशा युवा विकास मंच के मुकेश पासवान कहते हैं कि सरकार हर घर शुद्ध पेयजलापूर्ति सुनिश्चित करने का दम भर रही है। कुअमा गांव वासियों को नल खोलकर पानी पीने का सपना अभी पूरा नहीं हुआ है। जयमंगल महतो कहते हैं कि कुअमा में समस्याओं का अंबार है। जर्जर सड़कों को देख यूं लगता है अभी भी लोग आदिम युग में जी रहे हैं। वहीं बिजली के लटकते जर्जर तार मानों दुर्घटना को खुला निमंत्रण है। विभागीय अधिकारी शिकायत पर संज्ञान नहीं लेते नतीजतन सब बस राम भरोसे चल रहा है। बुजुर्ग किसान रामाज्ञा मिश्र कहते हैं कि फसलों की ससमय सिचाई किसानों की सबसे बड़ी समस्या है। नलकूप बंद पड़े हैं। बिजली की लचर व्यवस्था एवं कृषि हेतु बिजली कनेक्शन कीसे लोगों को भारी परेशानी है। उमेश राय बताते हैं कि यहां की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। बस खेती और मजदूरी यही जीने का सहारा है। ऐसे में किसानों को जरुरी संसाधन एवं अपने उत्पाद बेचने में भारी परेशानी होती है। खेतों से ईंख की खेप मिल तक पहुंचाने में किसानों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। मशीर अंसारी बकटपुर निवासी बताते हैं कि पंचायत में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। सड़क, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी अहम जरुरतों के लिए लोग परेशान हाल हैं। विकास के सारे दावे झूठे हैं। हमलोग तो बस ऊपरवाले के रहमो-करम पर जीते हैं।


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