युवाओं में बढ़ा है खादी का क्रेज
स्वतंत्रता आंदोलन से प्रारंभ खादी वस्त्र उद्योग अब सिर्फ नेताओं एवं शिक्षकों की पसंद नहीं रही।
शिवहर। स्वतंत्रता आंदोलन से प्रारंभ खादी वस्त्र उद्योग अब सिर्फ नेताओं एवं शिक्षकों की पसंद नहीं रही। वरन आज के आधुनिक दौर में खादी युवाओं की भी पसंद बन रही है। यही कारण है कि मुख्यालय स्थित सीतामढ़ी जिला खादी ग्रामोद्योग संघ की इकाई पूर्व की अपेक्षा बदले हुए हालात में है। जहां पहले ग्राहकों का इंतजार रहता था वहां अब ग्राहक खादी भंडार खुलने का इंतजार करते हैं। इसके पीछे वस्तुत: खादी भंडार की बदलती रणनीति है। अब यहां भी कपड़े की वेराईटीज दिखती है। तभी तो शिवहर जैसे छोटे से जिले में खादी भंडार की कुल बिक्री 18 लाख तक पहुंच गयी है जिसमें दिनानुदिन वृद्धि है रही है। - महिलाएं चरखा से कातती हैं सूत खादी भंडार में रखे चरखों पर महिलाएं आकर सूत कातती हैं, जिसके एवज में उन्हें पारिश्रमिक दिया जाता है। भंडार के व्यवस्थापक इंदल मंडल एवं बिक्री प्रभारी जगन्नाथ पासवान बताते हैं कि दर्जन भर से अधिक महिलाओं के लिए यहां चरखा एवं कपास मुहैया कराया जाता है। जहां 10 बजे प्रात: से अपराह्न 3 बजे तक सूत काता जाता है। वहीं कोठिया, विसुनपुर, खैरवा, बसहिया डुमरी, सुगिया कटसरी आदि गांवों से आकर महिलाएं कपास ले जाती हैं जिसे सूत में बदलकर भंडार में जमा करती हैं। बदले में निर्धारित मानक के अनुसार सूतकारों को पारिश्रमिक भुगतान किया जाता है। यह भी जानकारी दी कि जिले के 5 महिला सूतकारों को गृह निर्माण के लिए 25 हजार रुपये दिया गया था। बताया कि हाल ही में बिहार सरकार के खादी पुनरुद्धार योजना के तहत 8 टकुएवाला 15 नया अंबर चरखा आया है जो काफी आधुनिक एवं सुविधाजनक है। मौके पर मौजूद सीतामढ़ी से प्रधान कार्यालय से आए अनिल कुमार, दिनेश ठाकुर ने बताया कि खादी हमारी विरासत है जिसे अक्षुण्ण बनाए रखना हम समस्त भारतीय का कर्तव्य है। खादी वस्त्र निर्माण स्वरोजगार का बेहतर विकल्प है। वहीं महिलाओं के लिए आर्थिक संबल भी है। खुशी जाहिर करते हुए कहा कि खादी के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। कहा कि संघ के निर्णय के आलोक में खादी भंडार का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।