दोहरे जलसंकट से जूझ रहे जिलावासी
शिवहर। आज प्रकृति जिस तरह से प्रतिकूल हो गई है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इसके परिणाम दुखद होंगे। खरीफ फसल लगाने को जरुरी पर्याप्त बारिश नहीं होने से जहां किसानों की नींद उचट गई है वहीं दूसरी ओर कई गांवों में इन दिनों चापाकल से पूर्व की तरह पानी नहीं निकल रहा। आज प्रकृति जिस तरह से प्रतिकूल हो गई है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इसके परिणाम
शिवहर। आज प्रकृति जिस तरह से प्रतिकूल हो गई है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इसके परिणाम दुखद होंगे। खरीफ फसल लगाने को जरुरी पर्याप्त बारिश नहीं होने से जहां किसानों की नींद उचट गई है वहीं दूसरी ओर कई गांवों में इन दिनों चापाकल से पूर्व की तरह पानी नहीं निकल रहा। पानी के लिए पहले पांच से दस मिनट मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं हाल मोटरचालित पंप का भी है, जिससे पहले जैसा पानी नहीं निकल रहा। एक तरफ आकाश पानी नहीं बरसा रहा तो दूसरी ओर पाताल का पानी और गहरे जा रहा है। कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि शिवहर जिला इन दिनों दोहरे जल संकट से जूझ रहा है।
लोग इसे बदलते समय का परिणाम कह लें लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस परिस्थिति के लिए हम कहीं न कहीं स्वयं जिम्मेदार हैं। पेड़ पौधों की निर्दयतापूर्वक कटाई एवं भूगर्भीय जल का निरंतर दोहन आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है कि प्रकृति के सर्वोत्तम उपहार जीवन जल के लिए न सिर्फ मशक्कत करनी पड़ रही है बल्कि इंसान एवं उसके आहार (फसलों) के पोषण में परेशानी हो रही है। पीएचईडी कार्यपालक अभियंता धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि जिले में भूगर्भीय जल का पहला स्तर खत्म होने को है गोया कि दूसरे जलस्तर तक सेंधमारी की स्थिति आ गई है। अगर हालात पर नियंत्रण नहीं हुआ तो फिर तीसरे चौथे और अंत में जीरो डे की स्थिति बन सकती है। इस भयानक समस्या की वजह है पानी के महत्व को नहीं समझना एवं उसकी बेवजह बर्बादी। गांवों में इन दिनों सिचाई के लिए मोटर चालित पंप खूब प्रचलन में है। बदलते जमाने के साथ आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग आवश्यक है कितु उसका दुरुपयोग हमारे लिए दुखदाई साबित होगा इसे मानकर चलना होगा। बताया जा रहा है कि अभी अधिकांश गांवों में किसान रात को मोटरचालित पंप खुला छोड़ घर में आराम से सो जाते हैं इस उम्मीद के साथ कि खेतों में पर्याप्त पानी इकट्ठा हो जाएगा। अगले दिन न सिर्फ उनकी खेत पानी से लबालब भर जाता है बल्कि पड़ोस के खेतों में भी पानी भर जाता है। अमूल्य पानी को इस कदर बर्बाद करने का अधिकार किसी को नहीं है। जल स्तर नीचे जाने का दूसरा कारण नल जल योजना का दुरुपयोग भी माना जा रहा है। इस योजना के तहत गली गली एवं हर मोहल्ले में नल जल की टोंटियां दिख रही हैं। वहीं नल के जल की पूरी फिजुलखर्ची एवं बर्बादी भी हो रही है। लोग भूल गए हैं जल संरक्षण आज की सबसे अहम जरूरत है। इसके लिए सख्त नियम, निगरानी एवं जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।