सदर अस्पताल में बर्बाद हो रहा खून
सदर अस्पताल में बच्चों को खून चढ़ाने में काफी मात्रा में इसकी बर्बादी हो रही है।
जासं, छपरा : खून का एक-एक कतरा महत्वपूर्ण होता है। लेकिन छपरा सदर अस्पताल की स्थिति देख तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। यहां एक कतरा की कौन कहे, काफी मात्रा में खून को कचरे में फेंक दिया जाता है। खासकर बच्चों को रक्त चढ़ाने के दौरान काफी खून की बर्बादी होती है।
एक बीमार बच्चे को सौ से डेढ़ सौ एमएल खून की जरूरत होती है। लेकिन सदर अस्पताल के ब्लड बैंक से जो खून उपलब्ध कराया जाता है वह यूनिट में होता है। एक यूनिट में 350 एमएल ब्लड की मात्रा होती है। अगर सदर अस्पताल में भर्ती किसी बच्चे को रक्त की जरूरत पड़ी तो उसे स्वजन ब्लड बैंक पहुंचते हैं। वहां उन्हें एक यूनिट के बदले इतना ही खून देना पड़ता है। उस खून को अस्पताल में भर्ती बच्चे को चढ़ाने के लिए लाया जाता है तो वहां एक से डेढ़ सौ एमएल खून चढ़ाया जाता है। शेष बचे खून को नष्ट कर दिया जाता है। क्योंकि, एक बार खून का पैकेट खोले जाने के बाद उसका दोबारा इस्तेमाल नहीं हो पाता है।
विदित हो कि एनीमिक बच्चे या फिर जिस बच्चे का बोन मैरो कम है, हीमोग्लोबिन कम है अथवा गंभीर बीमारी है। उसके लिए खून की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन उन्हें डेढ़ सौ एमएल तक ही खून चढ़ाया जाता है। इस कारण पैकेट के शेष 200 से 250 ग्राम ब्लड वेस्ट हो जाता है। क्या कहते हैं अस्पताल उपाधीक्षक
जिले में ब्लड स्टोरेज के लिए कंपनी ने 350 ग्राम का ही पैकेट तैयार किया है। इसमें उतनी मात्रा ब्लड के अनुसार पर्याप्त केमिकल उपलब्ध होता है। इसलिए एक यूनिट से कम या अधिक ब्लड ना तो लिया जा सकता है, न हीं दिया जा सकता है। ऐसी स्थिति में शेष बचे ब्लड को वेस्ट करना पड़ता है, क्योंकि ब्लड पैकेट में एक बार निडिल लगने के बाद उसे दोबारा प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है।