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बड़ा मुद्दा : बिना भवन कास्कूल, खुले आसमान के नीचे लगती क्लास

न अपना भवन न शिक्षक के बैठने की जगह और न हीं कोई अन्य सामान। लेकिन यहां सरकारी स्कूल चलता है। स्कूल के बारे में गांव के लोग बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक के अलावा कभी-कभार आने वाले विभाग के कर्मियों को छोड़ किसी को भी जानकारी नहीं है। ऐसे स्कूलों की संख्या एक-दो नहीं बल्कि कई है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 08:11 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:35 AM (IST)
बड़ा मुद्दा :  बिना भवन कास्कूल, खुले आसमान के नीचे लगती क्लास
बड़ा मुद्दा : बिना भवन कास्कूल, खुले आसमान के नीचे लगती क्लास

भूपेंद्र कुमार सिंह, छपरा : न अपना भवन, न शिक्षक के बैठने की जगह और न हीं कोई अन्य सामान। लेकिन यहां सरकारी स्कूल चलता है। स्कूल के बारे में गांव के लोग, बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक के अलावा कभी-कभार आने वाले विभाग के कर्मियों को छोड़ किसी को भी जानकारी नहीं है। ऐसे स्कूलों की संख्या एक-दो नहीं बल्कि कई है।

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गड़खा प्रखंड के मिर्जापुर पंचायत के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय रामगाढ़ा, नवसृजित प्रावि मीठेपुर बनियावांटोला, नवसृजित प्रा वि मीठेपुर बिदटोली एवं अमनौर प्रखंड के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय जोगनी परसा का संचालन मौसम के हिसाब से होता है।

पता ही नहीं चलता यहां पढ़ते हैं बच्चे

बच्चों के स्कूल पहुंचने के पहले व छुट्टी के बाद किसी को इस बात का एहसास नहीं हो सकता कि मंदिर, सामुदायिक भवन, पंचायत भवन एवं पेड़ के नीचे यहां पहली से पांचवी कक्षा के बच्चे शिक्षा हासिल करते हैं।

दर्जनों ऐसे स्कूल विभाग के वरीय अधिकारियों की जानकारी में हैं। लेकिन आंकड़ा व रिपोर्ट तलब करने, विभाग के आलाधिकारी को प्रेषित करने के अलावा कोई ठोस कार्रवाई इन स्कूलों के कायाकल्प करने की दिशा में नहीं की गई।

मौसम के हिसाब से चलते है ये स्कूल

वर्षा होने या कड़ी धूप में स्कूल बंद होना आम बात है। यदि मौसम अनुकूल है व बादल नहीं तो सब ठीक है। लेकिन वर्षा अथवा धूप तेज होने पर स्कूल बंद करना मजबूरी है। धूप से राहत के लिए आम के बगीचे में क्लास लगाया जाता है। लेकिन बारिश होने पर बच्चे घर चले जाते हैं। शिक्षक बगल के किसी दरवाजे पर बैठकर समय पूरा होने का इंतजार करते हैं। गड़खा के ही बाजिदपुर पंचायत अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय वाजिदपुर में पहली से पांचवी कक्षा का संचालन एक ही खपरैल कमरे में होता है। यहां तक कि जिस कक्ष में बच्चे पढ़ते हैं उसी में एमडीएम भी बनता है। पिछड़े वर्ग के लोगों की है बहुलता :

ऐसा देखा जा रहा कि ऐसे अधिकांश विद्यालय पिछड़ा वर्ग व अजा वर्ग की बहुलता वाली बस्तियों में हैं। बच्चों के लिए घर के करीब स्कूल देकर इन्हें तत्काल खुशी दी गई। लेकिन ऐसे विद्यालयों में इनके बच्चों का भविष्य किस तरह गढ़ा जा रहा यह आसानी से समझा जा सकता है। अमनौर के जोगनी परसा गांव में पिछड़े वर्ग के लोगों की बहुलता है। खेती व मजदूरी ही इनकी आजीविका का साधन है। यही हालत गड़खा के मीठेपुर बनियावां टोला एवं बिदटोली की भी है। वहीं रामगाढ़ा गांव में भवनहीन नवसृजित प्रावि अजा बस्ती में स्थित है। सड़क पर बेपरवाह वाहन चालकों से मंडरा रहे खतरे के बीच छोटे बच्चों को गांव से दूर के स्कूलों में लोग अपने बच्चों को नही भेज पाते हैं।

विभागीय अधिकारी को इसकी जानकारी, एमडीएम नहीं मिलता बच्चों को :

नवसृजित प्राथमिक विद्यालय जोगनी परसा के भवनहीन व संसाधन विहीन होने की जानकारी बीईओ जगदीश भगत को है। इस स्कूल के बच्चे एमडीएम से वंचित हैं। हालांकि पोशाक एवं छात्रवृति का लाभ बच्चों को मिलता है। भवन निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण है समस्या :

स्कूल के भवन निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण बड़ी समस्या है। यहां तो लोगों को खेती लायक जमीन भी नहीं है। ऐसे में स्कूल के लिए जमीन दान मिलने की बात बेमानी है। कही मठ मंदिर तो कही गैरमजरुआ जमीन पर भवन निर्माण का प्रस्ताव ग्रामीण दे रहे। लेकिन सरकारी नियमों की पेचीदगी आड़े आ रही है। अमनौर के जोगनी गांव में स्थित मंदिर के नाम पर दस कट्ठा जमीन है। मंदिर की जमीन पर स्कूल के भवन निर्माण के लिए ग्रामीण सहमति जता रहे। लेकिन मंदिर की जमीन पर भवन निर्माण के लिए एनओसी जारी करने में अंचल कार्यालय असमर्थता जता रहा है। इस स्कूल को पड़ोसी गांव नवादा स्थित स्कूल में टैग करने का प्रयास किया गया। कितु ढाई किमी दूर उस स्कूल में जाने से बच्चों ने इनकार कर दिया। विधान मंडल में उठा मामला व निदेशक ने लिखा पत्र, परिणाम सिफर:

बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के राज्य परियोजना निदेशक अरविद कुमार वर्मा ने डीपीओ(प्रारंभिक शिक्षा एवं सर्वशिक्षा अभियान) अमरेंद्र कुमार गौड़ को इस मामले में कार्रवाई को ले पत्र भेजा । उसमें जर्जर, भवनहीन, संसाधन विहीन स्कूलों का ब्योरा मांगा गया। यह रिपोर्ट फरवरी महीने में ही तलब की गई थी।

हर साल बीआरसी के माध्यम से डीपीओ को दिया जाता है पूर्ण विवरण :

निदेशक विवरण मांग रहे हैं। तो दूसरी तरफ एचएम हर साल इसका पूर्ण विवरण बीआरसी में बीईओ को सौंपते हैं। फिर बीईओ के माध्यम से प्रखंड क्षेत्र के सभी विद्यालयों में मौजूद संसाधन व शिक्षकों की उपलब्धता का विस्तृत विवरण डीपीओ को उपलब्ध कराया जाता है। जाहिर है कि डीपीओ कार्यालय से इसका समेकित रिपोर्ट निदेशालय को प्रेषित किया जाता है। इसके बावजूद जनप्रतिनिधियों द्वारा मामला उठाए जाने पर रिपोर्ट मांगना विभागीय कामकाज के तौर तरीके पर पर सवालिया निशान है। इनसेट करें :

जिले में भवनहीन विद्यालयों की संख्या : 178

प्राथमिक विद्यालयों की संख्या : 1511

बोले एचएम:

यहां बच्चों को पढ़ाने मे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । स्कूल में जो बुनियादी सुविधाएं होने चाहिए यहां कुछ भी नहीं है। विभाग के अधिकारियों को इससे अवगत कराने के साथ ही कई बार स्मारित कर चुके हैं।

लालबाबू प्रसाद प्रधानाध्यापक नवसृजित प्राथमिक विद्यालय जोगनी परसा अमनौर

इस स्कूल के लिए न तो जमीन है और नहीं अपना भवन। बगल में ही सरकारी जमीन है जिसे चिन्हित कर उसके अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरु की गई। लेकिन प्रशासनिक उदासिनता से फाइल लंवित है।

मंटू कुमार राम , नवसृजित प्राथमिक विद्यालय रामगाढ़ा गड़खा


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