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कई गांवों में घुसा बाढ़ का पानी, सैकड़ों एकड़ में लगी मक्के की फसल हो रही बर्बाद

गंगा नदी के जलस्तर बढ़ने से प्रखंड के कई क्षेत्र में ग्रामीणों के मकान पानी से घिर गए हैं। रामदासचक, आमी कर्मवारीपट्टी दलित टोला , मथुरापुर , नगर पंचायत के बसतपुर बरबन्ना , राईपट्टी आदि क्षेत्रों में लोगों के मकान पानी से घिर गए है ।

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Sep 2018 10:59 PM (IST)Updated: Sat, 08 Sep 2018 10:59 PM (IST)
कई गांवों में घुसा बाढ़ का पानी, सैकड़ों एकड़ में लगी मक्के की फसल हो रही बर्बाद
कई गांवों में घुसा बाढ़ का पानी, सैकड़ों एकड़ में लगी मक्के की फसल हो रही बर्बाद

संसू, दिघवारा: गंगा नदी के जलस्तर बढ़ने से प्रखंड के कई क्षेत्र में ग्रामीणों के मकान पानी से घिर गए हैं। रामदासचक, आमी कर्मवारीपट्टी दलित टोला , मथुरापुर , नगर पंचायत के बसतपुर बरबन्ना , राईपट्टी आदि क्षेत्रों में लोगों के मकान पानी से घिर गए है । प्रखंड के दियारा स्थित आकिलपुर पंचायत चारों ओर से पानी से घिर गया है । ग्रामीण अपने मवेशियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने को मजबूर हैं । दिघवारा प्रखंड क्षेत्र में गंगा नदी का पानी आबादी क्षेत्र के निचले इलाकों व तट को पानी का स्तर छूने लगा है। जिस तरह जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही लोग बाढ़ आने की आशंका से सहमे हुए है ।वहीं गंगा किनारे बसे गांवों में लोगों के सैकड़ो एकड़ में लगी खरीफ फसल पूरी तरह जलमग्न हो गई है । लोग अपने फसलों को जुगाड़ के नाव व डेंगी से डूबे मकई के फसल को लाने को मजबूर है । वहीं प्रखंड के दियारा क्षेत्र में अवस्थित अकिलपुर पंचायत के लोगो का आवागमन का एक मात्र साधन नाव है । जहां लोग निजी नाव वालों को चालीस रूपया देकर आवागमन कर रहे है ।

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प्रखंड क्षेत्र के सैकड़ों एकड़ में मकई की खेती होती है । दियारा की रेतीली भूमि में होने वाला मक्का के दाने काफी टेस्टी होते है । दियारा के मकई का डिमांड भी रहता है । यहां की मकई आढ़त से होते हुए टाटा , रांची , पटना सहित अन्य जिलों में भी भेजी जाती है । लेकिन दियारा के सैकड़ों एकड़ में लगी मकई की फसल जलमग्न होने से किसान बेहाल है । प्रखंड क्षेत्र का भौगोलिक बनावट ही ऐसा है कि यहां धान की अपेक्षा मकई की फसल अधिक रकबा में लगाई जाती है। प्रखंड क्षेत्र के खेतों में मक्के की फसल लहलहाते दिखते है ।हालांकि , धान की तरह मक्का उत्पादक किसानों को सरकार की योजनाओं का लाभ हासिल नही है ।खासतौर पर बाजार की समस्या है । मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नही होने से किसानों को कम कीमत पर अपनी उपज बेंचनी होती है ।इसकी खेती से परिवार का खर्च निकालना मुश्किल है ।अब जब सैकड़ों एकड़ में लगी फसल गंगा नदी के पानी में डूब चुकी है । इससे तो किसानों की कमर टूट गई है ।


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