विभूतिपुर पीएचसी में नहीं हैं महिला चिकित्सक
पीएचसी विभूतिपुर में सरकारी अस्पताल की व्यवस्था लोगों को मुंह चिढा रही है। अस्पताल में डाक्टरों और कर्मियों की काफी कमी है।
समस्तीपुर। पीएचसी विभूतिपुर में सरकारी अस्पताल की व्यवस्था लोगों को मुंह चिढा रही है। अस्पताल में डाक्टरों और कर्मियों की काफी कमी है। पीएचसी में एक भी महिला चिकित्सक नहीं है। एएनएम, आशा और ममता के भरोसे ही महिलाओं का इलाज होता है। बेड पर चादर भी नहीं बिछाएं जाते हैं। मरीजों अपने घर से चादर लाना पड़ता है। अस्पताल के पास भवन तो है पर सुविधाओं का घोर अभाव है। अस्पताल में एडमिट रोगियों का कहना था कि पूरे दिन में उन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला है। यहां तक कि पानी भी खुद भरकर बाहर से लाना पड़ता है। इस अस्पताल में एक भी महिला चिकित्सक नहीं है कि पूर्व में डॉ. विभा कुमारी महिला चिकित्सक थी। जो वर्षों से श्री कृष्ण मेडिकल अस्पताल, मुजफ्फरपुर में प्रतिनियोजन पर कार्यरत हैं। इस वजह से महिला मरीजों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। आशा ममता और एएनएम के भरोसे ही पूरी व्यवस्था चल रही है।
सप्ताह में एक दिन ही बैठते हैं प्रभारी चिकित्सक प्रभारी
इस सरकारी अस्पताल में प्रभारी पदाधिकारी डॉ. अर¨वद कुमार सप्ताह में मंगलवार और शुक्रवार को ही अस्पताल नजर आते हैं। इससे मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सफाई व्यवस्था दुरूस्त
अस्पताल के पास मनोरम भवन है तथा सफाई व्यवस्था भी लगभग ठीक है। सफाई कर्मी प्रतिदिन अस्पताल परिसर समेत वार्डों की साफ सफाई किया करते हैं।.
चादर की व्यवस्था नहीं
इस पीएचसी में चादर की व्यवस्था नहीं है। मरीजों को अपने साथ लाए चादर या कपड़ों से ही काम चलाना पड़ता है।
चिकित्सकों के रहने की व्यवस्था नहीं
यहां ऑन ड्यूटी चिकित्सक अपने घर से ही आते जाते हैं। जबकि चिकित्सकों के रहने के लिए इस अस्पताल में पर्याप्त व्यवस्था है।
बाहर से लानी पड़ती दवा
इस पीएचसी में सरकारी दवा की व्यवस्था नहीं है। रोगियों को बाजार से दवा खरीद कर लाना पड़ता है। कई मरीजों का तो यह भी कहना है कि पर्चा काटकर दवा लिख दी जाती है और बताया जाता है कि बाहर से मंगवा लें। हॉस्पीटल में दवा उपलब्ध नहीं है।
ढूंढने के बाद मिलते चिकित्सक
रोगियों को चिकित्सों को ढूढना पड़ता है। जब वे इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं तब चिकित्सक को उनके कक्ष में और पूरे अस्पताल के परिधि में ढूंढना पड़ता है। फिर बडी मशक्कत के बाद चिकित्सक मिल पाते हैं और तब उपचार की खानापूर्ति होती है। .