कर्ज लेकर पहले शौचालय बनाया फिर बजी शहनाई
विभुतिपुर पूर्वी पंचायत के एक युवक ने पहले ब्याज पर कर्ज लेकर शौचालय बनाया उसके बाद ही घर में शहनाई बजाई। उसने संकल्प लिया था कि जब तक शौचालय नहीं बनेगा तबतक उसके घर में न तो शहनाई बजेगी और न ही कोई शुभ कार्य होगा।
समस्तीपुर । विभुतिपुर पूर्वी पंचायत के एक युवक ने पहले ब्याज पर कर्ज लेकर शौचालय बनाया उसके बाद ही घर में शहनाई बजाई। उसने संकल्प लिया था कि जब तक शौचालय नहीं बनेगा, तबतक उसके घर में न तो शहनाई बजेगी और न ही कोई शुभ कार्य होगा। अब जबकि शौचालय बन गया है तो इज्जतदार होने का अरमान भी उसका पूरा हो गया है। यह कहानी है विभूतिपुर के मोहम्मद मुमताज की। 25 वर्षीय मोहम्मद मुमताज अपनी माता नूरजहां खातून के साथ एक घर में रहता है। जो घर भी अदद नहीं है। पिता मोहम्मद दाऊद 8 वर्ष पहले खुदा के प्यारे हो गए। बड़ा भाई मुस्तफा परदेश में कमाता है। अपने परिवार के साथ बनारस में रहता है। छोटे भाई मोहम्मद मुमताज की शादी कर लेने की जिद जब उसकी मां करती थी, तो वह कहता था कि जब तक शौचालय नहीं बन जाता तब तक घर की इज्जत को वह कैसे लाएगा। इसके लिए मोहम्मद मुमताज ने प्रखंड के कार्यालय के कई दिनों तक चक्कर लगाया। नेता कार्यकर्ता तथा पदाधिकारी से कई दिनों तक गुहार लगाई, लेकिन कहीं जब उसके अरमान पूरे नहीं हुए तो उसने सोच लिया कि वह कर्ज लेकर शौचालय बना लेगा। आखिरकार बुलंद हौसले के सामने गरीबी मात खा गई और शौचालय बन गया। मोहम्मद मुमताज कहता है कि मां की जिद है तो शादी करनी ही होगी, जो तब तक संभव नहीं था, जब तक शौचालय नहीं बन जाता। इसलिए 25000 रुपये उसने ब्याज पर लिए और शौचालय बनवा लिया। वह कहता है कि कि जब तक शौचालय नहीं है घर अधूरा है। शौचालय बना लेगा फिर इंदिरा आवास बनाने के लिए सरकार से गुहार लगाएगा। मुमताज कहता है कि स्वच्छता अभियान के आंदोलन के प्रति वह समर्पित रहा है तथा कई कार्यक्रमों में भाग भी लिया है। सोच बदलने से काम हो जाता है यही सोच कर कर्ज लिया कि बना लेने के बाद ही वह सरकारी सहायता के लिए कार्यालय का चक्कर लगाएगा। मुमताज की मां का कहना है कि केवल उसके पास 8 धूर जमीन है। इसी वजह से घर के आंगन में ही शौचालय भी बना लिया है। इस समाज में वह सबसे अधिक निर्धन है, लेकिन सरकार की ओर से कोई सुविधा अभी तक उसे नसीब नहीं हुई है। गांव के एक समाजसेवी डॉ. मुकेश कुमार ¨सह बताते हैं कि इस निर्धन युवक का साहस उन लोगों के लिए मिसाल है, जो सरकार से अनुदान लेने की प्रत्याशा में शौचालय नहीं बनाते हैं। लेने के बाद ही अनुदान की राशि विधिवत प्रक्रिया से लाभार्थी को मिल पाती है या नहीं तो मोहम्मद मुमताज ने इसे पूरा कर लिया है। इस तरह उसने समाज के समक्ष एक मिसाल भी खड़ा किया है। बीस सूत्री अध्यक्ष तरुण कुमार ¨सह बताते हैं कि शौचालय बना लेने के बाद ही अनुदान की राशि देने की दिशा में प्रक्रिया शुरू होती है। जो मोहम्मद मुमताज ने शौचालय बनाकर सार्थक कार्य किया है।