छऊ नृत्य की प्रस्तुति ने लोगों का मन मोहा
भारतीय संस्कृति और परंपरा अनेक प्रकार की कलाओं से सजी है। शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य कलाएं भारत की समृद्ध परंपरा का बखान तो करती हैं, लेकिन कुछ ऐसी लोक कला भी हैं जिनके कारण हमारी संस्कृति आज भी इस दुनिया में बुलंद मीनार की तरह सिर उठाए खड़ी है।
समस्तीपुर । भारतीय संस्कृति और परंपरा अनेक प्रकार की कलाओं से सजी है। शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य कलाएं भारत की समृद्ध परंपरा का बखान तो करती हैं, लेकिन कुछ ऐसी लोक कला भी हैं जिनके कारण हमारी संस्कृति आज भी इस दुनिया में बुलंद मीनार की तरह सिर उठाए खड़ी है। लोकनृत्य में सुप्रसिद्ध छऊ नृत्य को शुक्रवार को स्पीक मैके के तत्वावधान में उच्च माध्यमिक विद्यालय सरायरंजन के परिसर में स्कूली बच्चों के बीच जीवंतता के साथ कलाकारों ने प्रस्तुत कर अमित छाप छोड़ने में सफलता पायी। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले से आए कलाकारों ने भाव भंगीनाओं और नृत्य के माध्यम से युद्ध की तकनीक को विशिष्ट रूप से प्रस्तुत कर सब का मन मोहने में कामयाबी हासिल की। परंपरागत लोक संगीत की धुन के साथ ढोल, धूम्सा, खर्रा, मोहरी व शहनाई जैसे वाद यंत्रों के प्रयोग से छऊ नृत्य की प्रस्तुति को चार चांद लगा रहे थे। कलाकारों ने छऊ नृत्य के माध्यम से महिषासुर वध प्रसंग दिखाकर महिला सशक्तिकरण का भी संदेश दिया। कलाकारों में मुख्य रूप से कांति रजक, सहायक गोपाल महतो, तारा पदक सहिस, बुद्धू मूदी, अमृत बउरी, गणेश सरदार, गौतम सहिस, सुबौल महतो, सुकुमार सहीस, निर्मल सहीस, मंतोष महतो, श्रीदाम चंद्रम महतो, दुर्योधन बउरी, कल्याण महतो, सुशांत गौरी कलाकारों ने अपने कला से लोगों का मन मोह लिया। कार्यक्रम के संयोजक रंजीत निर्गुणी ने बताया कि वर्तमान परिवेश में अपनी लोक कलाओं को जीवित रखना हमारे हाथ में हैं। बचपन से बच्चों को शास्त्रीय कलाओं के साथ लोक कलाओं को भी सिखाया जाए तो उनकी भी पहचान भारत की मिट्टी से होगी। निर्गुणी ने इस दौरान उपस्थित छात्र-छात्राओं के माता-पिता को भी सम्मानित किया। मौके पर प्रधानाध्यापक रवींद्र कुमार ठाकुर सहित सभी शिक्षक एवं गणमान्य लोग उपस्थित थे।