वादों तक सिमटा रहा उद्योग का मुद्दा, कई पर लटक गए ताले
समस्तीपुर। जिले में नए उद्योग तो लगे नहीं पुराने का भी बंटाधार होता चला गया। हर बार चुनावी वादों में जिले में उद्योग धंधे का जाल बिछाने की घोषणा होती लेकिन घोषणाएं धरातल पर कभी नहीं उतरती है।
समस्तीपुर। जिले में नए उद्योग तो लगे नहीं पुराने का भी बंटाधार होता चला गया। हर बार चुनावी वादों में जिले में उद्योग धंधे का जाल बिछाने की घोषणा होती लेकिन घोषणाएं धरातल पर कभी नहीं उतरती है। नए उद्योग लगाने की बात तो दूर रही है पहले से लगे कारखानों का भी बंटाधार होता चला गया। एक के बाद एक ताले लटकते गए। कृषि प्रधान जिले में कृषि आधारित उद्योग की असीम संभावनाएं रहते हुए भी इस दिशा में कदम नहीं बढ़ाए गए। ----------------------
किन-किन उद्योगों की है संभावना
जिले में ईंख की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। यहां चीनी उद्योग की अपार संभावनाएं हैं इसके अलावा मक्का, आलू, मसाले की भी खूब खेती होती है। यहां का मक्का बाहर भेजा जाता है। जिले में इन उत्पादों पर आधारित उद्योगों की भी अपार संभावनाएं हैं।
----------------------
कारखानों में लटकते गए ताले
जिला मुख्यालय से सटे जितवारपुर में ठाकुर पेपर मिल था। इससे यहां के लोगों को रोजगार मिल रहा था लेकिन इसमें ताले लटक गए। अब तो इस मिल का नामोनिशान मिट चुका है। जमीन तक बेच दी गई। इसी तरह किसानों के लिए लाइफ लाइन माना जाने वाला शहर स्थित चीनी मिल भी वर्ष 1995 में बंद हो गया। इस चीनी मिल से किसानों को काफी फायदा होता था किसान ईंख की खेती कर खुशहाल थे। मिल के अवशेष तो यहां हैं, लेकिन इसकी जमीन भी बिक चुकी है। वहीं कर्मियों को आजतक शेष राशि नहीं मिल पाई है। आजादी के समय ही पटोरी में अवस्थित आइटीसी कंपनी को यहां से मुंगेर स्थानांतरित कर दिया गया। पूसा रोड का एल्यूमिनियम फैक्ट्री, वैनी का साबुन फैक्ट्री भी बंद हो गया। इसके अलावे मुक्तापुर की साइकिल फैक्ट्री सहित कई छोटे उद्योग भी बंद होते गए।
उत्तर बिहार का एकलौता जूट मिल भी हो गया बंद
उत्तर बिहार का एक मात्र उद्योग मुक्तापुर जूट मिल में तालाबंदी के दो वर्ष से अधिक हो गए। मिल पर आश्रित मजदूर और श्रमिकों के चुल्हे उपवास पड़ने लगे। आश्चर्य यह कि इस तालाबंदी को लेकर किसी ने इसकी सुधि नहीं ली। लोकसभा चुनाव की आहट से पूर्व अब लोगों ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। 2017 की जुलाई माह से बंद है जुट मिल
मुक्तापुर स्थित उत्तर बिहार का इकलौता जूट मिल गत 6 जुलाई 2017 से बंद है। इससे तकरीबन पांच हजार श्रमिक और कर्मी बेरोजगार हो गए हैं। इन मजदूरों का कहना है कि जब भी बाजार में किसी तरह की समस्या उत्पन्न होती है प्रबंधन किसी ने किसी बहाने मिल को बंद कर देता है। हर साल ऐसी समस्या उत्पन्न हो रही है। पीएफ सहित अन्य मदों के मजदूरों का लाखों रुपये मिल प्रबंधन के यहां बकाया है। श्रमिकों की लंबित मांगों के निपटारे व बकाये का भुगतान नहीं होने के कारण श्रमिक व प्रबंधन में लगातार गतिरोध बना हुआ है। मिल में कार्यरत श्रमिकों का बोनस भुगतान, 150 मजदूरों का पीएफ का भुगतान, 450 रिटायर मजदूरों के बकाए का भुगतान, श्रमिक ग्रेच्युटी का भुगतान वर्ष 2010 से करने व ईपीएफ मद की सितंबर 2016 से लंबित राशि का भुगतान करने पर अड़े हुए हैं।