बचपन की शर्तो को बचाए रखना शिक्षकों का पहला दायित्व
हम अपने प्रयोगों पर शिक्षा को चाहे जहां तक विश्लेषित करें बचपन की शर्तो को बचाए रखना हमारा पहला दायित्व है। हम बाल मनोविज्ञान की स्वाभाविकता को नष्ट नहीं कर सकते।
समस्तीपुर । हम अपने प्रयोगों पर शिक्षा को चाहे जहां तक विश्लेषित करें, बचपन की शर्तो को बचाए रखना हमारा पहला दायित्व है। हम बाल मनोविज्ञान की स्वाभाविकता को नष्ट नहीं कर सकते। उक्त बातें प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी ने कहीं। वह आनंदशाला गोष्ठी के दूसरे सत्र में आयोजित परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे। एससीईआरटी के पूर्व निदेशक एके पांड्या ने कहा कि जिस प्रकार बच्चे सीखते हैं, शिक्षक भी सीखते रहते हैं। 'वर्तमान संदर्भ में शिक्षार्थियों और सीखने के माहौल को समझना' विषय पर समस्तीपुर के यूएन पैलेस में आयोजित परिचर्चा का संचालन करते हुए दीपिका सिंह ने कहा कि बच्चों के बीच संवाद का स्वरूप बदला है, लेकिन रिश्ता कायम है। परिचर्चा में संकुल समन्वयकों ने भी भाग लिया। तीन दिवसीय आनंदशाला गोष्ठी का उद्घाटन संयुक्त रूप से पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह, आनंदशाला के एसोसिएट डायरेक्टर अमिताभ नाथ, एपीओ सुरेश राम और एके पांड्या ने किया। कार्यक्रम में आनंदशाला की ओर से शीतांशु शर्मा, दीपक शाही, इरफत अंजुम, प्रभात कुमार, अश्विनी कुमार आलोक, सुनील कुमार, अंजू प्रिया, राजलक्ष्मी, शाहिद,नबी हसन, हिमांशु कुमार, रजनीश चंद्रा आदि उपस्थित रहे। दूसरे दिन कार्यशाला का आयोजन विक्रमपुर बांदे के बीबी फातिमा बीएड कॉलेज में भी किया गया। एसआरजी सदस्य मनोज कुमार त्रिपाठी, सुमन कुमार सिंह, शिवजी चौधरी, शिव कुमार एवं संकुल समन्वयकों के बीच 'प्रारंभिक शिक्षा में बढ़ रहे अंतर तथा अवसर' विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। संपूर्ण बिहार की तुलना में समस्तीपुर जिले के विद्यालयों में बच्चों का ठहराव एवं हिदी तथा गणित सीखने की प्रतिशतता कम होने को गंभीरता से लिया गया है। विद्यालयों की प्रतिधारण क्षमता भी तुलनात्मक रूप से कम होने को विश्लेषित किया गया। इस विसंगति के पीछे सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन एवं अभिभावकों का बढ़ती उम्र के बच्चों पर कम ध्यान देना माना गया। वहीं दूसरे सत्र में सीआरसीसी को छोटे छोटे समूहों में बांटकर उनकी भूमिकाओं, दायित्वों एवं आवश्यकताओं पर चर्चा हुई।