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जन के दर्द से तंत्र का पड़ा वास्ता तो निकल रहा नया रास्ता

पूरा विश्व कोरोना के संक्रमण से चितित है। लोगों की प्राणरक्षा के लिए देश में करीब तीन महीने का लॉकडाउन रहा। इस दौर में रोजगार का संकट छाया। गरीबी को मात दे प्रवासी कामगार जब अपने घर लौटे तो जन सुरक्षा के लिए स्थापित तंत्र की चिता गहरा गई।

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Jun 2020 12:29 AM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 12:29 AM (IST)
जन के दर्द से तंत्र का पड़ा वास्ता तो निकल रहा नया रास्ता
जन के दर्द से तंत्र का पड़ा वास्ता तो निकल रहा नया रास्ता

समस्तीपुर । पूरा विश्व कोरोना के संक्रमण से चितित है। लोगों की प्राणरक्षा के लिए देश में करीब तीन महीने का लॉकडाउन रहा। इस दौर में रोजगार का संकट छाया। गरीबी को मात दे प्रवासी कामगार जब अपने घर लौटे तो जन सुरक्षा के लिए स्थापित तंत्र की चिता गहरा गई। पहली चिता यह कि जान की रक्षा हो। जब प्राणरक्षा का मार्ग बिना किसी वैक्सीन के सतर्कता की बदौलत मजबूत हुआ तो अनलॉक वन लागू हो गया। इसी के साथ प्रवासी कामगारों के परिवार के भरण-पोषण की भी चिता हुई। सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि प्रवासी कामगारों के हुनर की पहचान की जाए और उसी आधार पर रोजगार मुहैया कराया जाए। इस आलोक में जिले में आए 40 हजार से अधिक प्रवासियों का स्किल सर्वे हुआ। इनमें से 11 हजार को मनरेगा के तहत जॉब कार्ड भी दे दिया गया। करीब दो हजार प्रवासी श्रमिक कार्य भी कर रहे। बाजार खुले तो वहां भी काम मिलने लगा है। इन सबके बीच अभी भी चुनौतियां बरकरार हैं। तत्काल मनरेगा के तहत दो हजार लोग काम तो कर रहे, लेकिन अभी भी नौ हजार लोगों का काम करना शेष है। यहां काम मिले तो बाहर जाने की क्या जरूरत

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जितवारपुर के रामप्रसाद बताते हैं कि यहीं काम मिल जाए तो बाहर कौन जाना चाहता। सरायरंजन प्रखंड की गंगापुर पंचायत भवन के निकट तालाब उड़ाही में लगे प्रवासी मजदूर अमरजीत शर्मा, संतोष कुमार राम, सिकंद राम, सोनू राम, उमेश पासवान बताते हैं कि गांव में ही रोजगार मिल गया है तो बाहर जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते। पीओ राजेश कुमार ने बताया कि काफी संख्या में लोगों को काम मिला है। मनिकपुर निवासी राकेश कुमार ने बताया कि पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। मेरी तो मजबूरी है। बेंगलुरु जाना ही पड़ेगा। समस्तीपुर में ट्रेन पकड़ने आए सौरभ कुमार का था। कहते हैं, सॉफ्टवेयर डेवलपर हूं। यहां रहकर कौन सा काम मिलेगा। इसलिए, जा रहा हूं। जीविका दीदियां कर रहीं सर्वे

इधर, जनप्रतिनिधि भी दलीय निष्ठा को हटाकर एक-दूसरे की मदद को आतुर हैं। प्रशासन की यह भी चिता है कि दूसरे राज्यों से लौटने वाले कामगारों को स्थानीय अर्थव्यवस्था में कैसे खपाया जाए। जीविका दीदियों द्वारा क्वारंटाइन सेंटरों में सर्वे किया जा रहा। सोच है कि किस सेगमेंट में कितने कुशल या अ‌र्द्धकुशल कामगार हैं। विभिन्न योजनाओं में रोजगार के मौकों के साथ ही स्किल्ड लोगों के लिए कौशल विकास, कुटीर उद्योग व स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) जैसे विकल्पों पर भी विचार किया जा रह। अर्थात, आमजनों की चिता से प्रतिनिधि (तंत्र) अवगत हुए तो अब रास्ता भी निकल रहा। प्रवासियों की स्किल मैपिग

कोरोना महामारी से निबटने की चिता के साथ ही स्थानीय प्रशासन की यह भी चिता है? कि दूसरे राज्यों से लौटने वाले कामगारों को स्थानीय अर्थव्यवस्था में कैसे खपाया जाए। इस समय सभी कामगारों की स्किल मैपिग की जा रही। जीविका दीदियों द्वारा राज्यभर के क्वारंटाइन सेंटरों में सर्वे किया जा रहा, ताकि यह पता चल सके कि इन कामगारों की क्षमता एवं रुचि क्या है? अभी तक 17 हजार स्किल्ड लोगों का डाटा तैयार किया जा चुका है। इनमें 75 सेक्टर के लोग हैं। जिनमें बढ़ई, प्लंबर, लेथ, वेल्डिग मशीन, मोटर मैकेनिक, राजमिस्त्री, गारमेंट व र्सिवस जैसे अन्य सेक्टर के कामगार शामिल हैं। प्रवासी श्रमिकों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार की तलाश

उद्योग विभाग के महाप्रबंधक बताते हैं कि प्रवासी श्रमिकों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार की तलाश की जा रही। इसमें हस्तकला का रोजगार, मिथिला पेंटिग, मधुबनी पेंटिग, टिकुली आर्ट जैसे क्राफ्ट तैयार करेंगे, जिसकी खरीद राज्य सरकार करेगी। हैंडलूम व खादी मॉल से ग्रामीण व कुटीर उद्योग में तैयार किए गए सामान की बिक्री की जाएगी। इसमें ई-कॉमर्स का भी सहारा लिया जा सकता है।


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