हर जगह धीमा जहर बन फैल रहा ई कचरा
आप शहर में कहीं भी जाएं, कचरा आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। कचरा निस्तारण के लिए कई योजनाएं बनीं मगर, सब के सब हवा हो गए।
समस्तीपुर । आप शहर में कहीं भी जाएं, कचरा आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। कचरा निस्तारण के लिए कई योजनाएं बनीं मगर, सब के सब हवा हो गए। अब ई-कचरा नया संकट के रूप में सामने आया है। ई-कचरा मतलब इलेक्ट्रॉनिक कचरा। मेडिकल कचरा की बात हो या फिर ई-कचरा की। घर एवं प्रतिष्ठानों से निकलने वाले कचरे का तो थोड़ा बहुत निस्तारण किया जा रहा है। लेकिन, ई-कचरा का कोई प्रबंधन नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से बाजार भरे पड़े हैं। तकनीक में हो रहे लगातार बदलावों के कारण उपभोक्ता भी नए-नए इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों से घर भर रहे हैं। ऐसे में पुराने उत्पादों को वह कबाड़ में बेच देता है और यहीं से आरंभ होती है ई-कचरे की समस्या। प्रतिदिन निकलने वाले ई-कचरे का आकलन नहीं
घरों एवं शहर के प्रतिष्ठानों से प्रतिदिन निकलने वाला ई-कचरा का अनुमान लगाना मुश्किल है। कारण यहां न तो ई-कचरे के प्रबंधन की व्यवस्था है और न ही इस दिशा कोई पहल की जा रही है। घरों व विभिन्न प्रतिष्ठानों से निकलने वाला ई-कचरा ठेला वेंडरों के हाथ कबाड़ के भाव बेचा जाता है। ठेला वेंडर
घरों व प्रतिष्ठानों से एकत्रित किए गए ई-कचरा को कबाड़ीवालों से बेच देते है। कई घरों से तो इस तरह के बेकार उत्पाद को फेंक दिया जाता है। क्या है ई-कचरा
तकनीक में आ रहे परिवर्तनों और स्टाइल के कारण बाजार में उपलब्ध नई इलेक्ट्रॉनिक्स सामान को क्रय किया जा रहा है और पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को
कबाड़ के भाव बेच दिया जाता है अथवा घर से बाहर फेंक दिया जाता है। जैसे पहले बड़े आकार के कम्प्यूटर, मॉनीटर आते थे, जिनका स्थान स्लिम और फ्लैट स्क्रीन वाले छोटे मॉनीटरों ने ले लिया है। माउस, की-बोर्ड या अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गए हैं, वे ई-वेस्ट की श्रेणी में आ जाते हैं। पुरानी शैली के कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों तथा अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण हर साल इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। ई-कचरे का बढ़ता आयात
चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों की आयात जिले में हो रही है। चाइनिज इलेक्ट्रॉनिक्स सामान सस्ता है और जल्द खराब भी हो जाते हैं। ऐसे कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारत में चौदह साल पहले बने कचरा प्रबंधन और निगरानी कानून 1989 को धता बताकर औद्योगिक घरानों नें इसका आयात जारी रखा है। लोग इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निपटाने में लगे हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि भी निकाली जाती हैं। इसे जलाने के दौरान जहरीला धुंआ निकलता है, जो काफी घातक होता है। तेजी से बढ़ती इलेक्ट्रॉनिक क्रांति से एक तरफ जहां आम लोगों की उस पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक कचरे से होने वाले खतरे ने ¨चता बढ़ा दी है। पर्यावरण के खतरे और गंभीर बीमारियों का स्त्रोत बन रहा है ई-कचरा। मोबाइल फोन, लैपटॉप, फैक्स मशीन, फोटो कॉपियर, टेलीविजन और कबाड़ बन चुके कम्प्यूटरों के कचरे भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे हैं। ई-कचरा के निस्तारण को नहीं है व्यवस्थित ट्रीटमेंट पर्यावरणविद् मो. शहजाद अहमद बताते हैं इस कचरे में लेड, मरक्युरी, केडमियम जैसे घातक तत्व भी होते हैं। दरअसल ई-कचरे का निस्तारण आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें प्लास्टिक और कई तरह की धातुओं से लेकर अन्य पदार्थ रहते हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है। इसे जलाने से जहरीला धुंआ निकलता है जो काफी घातक होता है। विकासशील देश इनका इस्तेमाल तेजाब में डुबोकर या फिर उन्हें जलाकर उनमें से सोना-चांदी, प्लैटिनम और दूसरी धातुएं निकालने के लिए करते हैं। भारत में सूचना प्रोद्योगिकी का क्षेत्र बंगलौर है। जरूरत है भारी मात्रा में निकलने वाले ई-वेस्ट के सही निस्तारण की। जब तक उसका व्यवस्थित ट्रीटमेंट नहीं किया जाता, वह पानी और हवा में जहर फैलाता रहेगा। निकलने वाला ई-वेस्ट कबाड़ी ही खरीद रहे हैं। इनके पास इस तरह के कचरे को खरीदने की न अनुमति है और न ही वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण की व्यवस्था। एक कम्प्यूटर में प्राय: 3.8 पौंड सीसा, फॉस्फोरस, केडमियम व मरकरी जैसे घातक तत्व होते हैं, जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। इनका अवशेष पर्यावरण के विनाश का कारण बनता है। ई-कचड़े से फेफड़ा और किडनी का खतरा डॉ. बरुण कुंड्डू बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक चीजों को बनाने के उपयोग में आने वाली सामग्रियों में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक,
बेरिलियम और मरकरी का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। इनमें से काफी चीजें तो रिसाइकल करने वाली कंपनियां ले जाती हैं, लेकिन कुछ चीजें नगर परिषद के कचरे में चली जाती हैं। वे हवा, मिट्टी और भूमिगत जल में मिलकर जहर का काम करती हैं। कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं, जबकि कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। प्रकृति के साथ हो रहा खिलवाड़ गौतम कुमार ने कहा कि ई-कचरे के दुष्परिणाम से कोई भी अंजान नहीं है लेकिन अब तक इसे रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है। अगर सरकार तेजी से बढ़ रही इस समस्या का निदान जल्द से जल्द नहीं निकालेंगी तो प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ का परिणाम हम सबको उठाना पड़ सकता है। ई-कचरे की हो रही अवैध रिसाइ¨क्लग रवि रंजन ने कहा कि पर्यावरण में असावधानी व लापरवाही से इस कचरे को फेंका जाता है, तो इनसे निकलने वाले रेडिएशन शरीर के लिए घातक होते हैं। इनके प्रभाव से मानव शरीर के महत्वपूर्ण अंग प्रभावित होते हैं। जरुरत है सख्त कानून बनाने और उतनी ही सख्ती से पालन कराने की। ताकि ई-कचरे की अवैध रिसाइ¨क्लग पर पूर्णविराम लग सके।