कागजों में सिमटी स्वास्थ्य व्यवस्था, इलाज के लिए भटक रहे मरीज
समस्तीपुर। मोहिउद्दीननगर में गांव-गांव प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के अलावा उपकेंद्रों की स्थापना कर दी गई। कितु यह व्यवस्था चिकित्सा कर्मियों के रोजी रोजगार में ही सहायक साबित हो रहा मरीजों को इसका कोई खास फायदा नहीं मिल रहा है।
समस्तीपुर। मोहिउद्दीननगर में गांव-गांव प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के अलावा उपकेंद्रों की स्थापना कर दी गई। कितु यह व्यवस्था चिकित्सा कर्मियों के रोजी रोजगार में ही सहायक साबित हो रहा मरीजों को इसका कोई खास फायदा नहीं मिल रहा है। गंभीर मरीज की कौन कहे सामान्य मरीज भी अपने उपचार के लिए चक्कर लगाते फिरते हैं। ऐसा ही कुछ हाल मोहिउद्दीननगर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है है। इसकी क्षमता 30 बेड की है। साथ ही बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था का दावा भी है। लेकिन लोगों के उपचार के नाम पर यह कराह रही है। यहां की व्यवस्था की पड़ताल जब जागरण की टीम ने की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। मोहिउद्दीननगर व मोहनपुर प्रखंड की तीन से चार लाख की आबादी का जिम्मा इस अस्पताल पर है। लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक नहीं होना सरकारी व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है। 2006 में मिला सामुदायिक अस्पताल का दर्जा
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को अपग्रेड कर 2006 में सामुदायिक अस्पताल का दर्जा दिया गया। कितु व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हो पाया। सिर्फ बड़े भवनों में इसे स्थानांतरित तो अवश्य कर दिया गया कितु चिकित्सक की प्रतिनियुक्ति नहीं की गई। जिससे सामुदायिक अस्पताल सिर्फ कहने मात्र तक ही सिमटा रहा।
गायब रहते चिकित्सक
06 चिकित्सक, 32 एएनएम के अलावे दर्जनों कर्मचारी यहां पदस्थापित हैं। जहां बताया जाता है कि अधिकांश चिकित्सक अपनी डयूटी छोड़ गायब रहते हैं। डॉ गणेश शंकर प्रसाद, डॉ टीके राय, डॉ विरेन्द्र कुमार स्थाई चिकित्सक है तो मानदेय पर डा. रंजन कुमार और साधु शरण प्रतिनियुक्त है। लोगों की शिकायत है कि वे कभी डयूटी पर नहीं आते हैं। सरकारी भवन मे निजी अस्पताल
अस्पताल के सरकारी भवन में ही एक चिकित्सक का वर्षो से बसेरा है। जिसमें वे अपनी निजी क्लिनिक भी संचालित करते हैं। वहीं कई चिकित्सक तो आते ही नहीं है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर लटक रहा ताला
गांव-गांव मे स्थापित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ताला लटके रहने की शिकायत सरेआम है। महमदीपुर, वाकरपुर, रासपुर पतसिया और कुरसाहा में चार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं तो सभी पंचायतों में कुल 20 उप केंद्र बनाए गए हैं। इलाज की नहीं है कोई व्यवस्था
ओपीडी का संचालन तो प्रतिदिन होता है कितु उसमें आयुष चिकित्सक की प्रनियिुक्ति की गई है। जिनके द्वारा सिर्फ कागजी कोरम के तौर पर इलाज कर कुछ दवाएं दे दी जाती हैं। मरीज बाजार से दवा खरीद कर लाते हैं। जिसे संपूर्ण दवा भी अस्पताल से नहीं मिल पाता। गंभीर मरीज आते हैं तो उन्हें रेफर कर दिया जाता है। चार लाख आबादी है निर्भर
मोहिउद्दीननगर और मोहनपुर प्रखंड के बीच अवस्थित इस इकलौते सामुदायिक अस्पताल पर लगभग चार लाख की आबादी की इलाज की जिम्मेदारी है। कितु विडंबना यह है कि अस्पतालों में योग्य चिकित्सक का अभाव है जिस कारण बड़ी समस्या होने पर लोग सीधे पटना यहां किसी अन्य बड़े शहरों में जाते हैं।
व्यवस्था को देख नहीं आते मरीज
दो प्रखंडो का इकलौते अस्पताल होने के कारण मरीजों की संख्या काफी जुटती है। जिसकी संख्या सौ के आसपास है। कितु बताते है कि यहां वैसे ही मरीज आते हैं जिनकी आंशिक तबियत खराब होती है। गंभीर मरीज यहां नहीं आते हैं। वह यहां की व्यवस्था को जानकर सीधे बाहर चले जाते है।
एनएम कराती प्रसव
चिकित्सकों की कमी का खामियाजा यहां के लोग भुगत रहे हैं। प्रसव पीड़ा के मरीजों की पहुंचने की यहां अच्छी तादाद है। कितु सामान्य प्रसव मरीज अपनी स्वेच्छा से नहीं आते। आर्थिक तंगी के कारण ही आशा व ममता कार्यकर्ताओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र की महिला यहां प्रसव कराने आती हैं। बताया जाता है कि महिला चिकित्सक यहां नहीं है। एएनएम प्रसव कार्य देखती है। जिसमे पुरुष चिकित्सक शामिल होते है। नवनिर्मित है अस्पताल
अस्पताल का भवन नवनिर्मित है। जहां सभी प्रकार की सुविधा मुहैया कराई गई है। कितु चिकित्सक की कमी के कारण सब बेकार साबित हो रहा है। जिसका लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है।
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