नशामुक्ति केंद्र में अब नहीं पहुंच रहे मरीज
शराबबंदी के समय जिले में नशामुक्ति केंद्र की स्थापना हुई । इस पर लाखों खर्च भी किए गए। आरंभ में तो यहां कुछ मरीज आए भी, लेकिन अब एक भी मरीज यहां नहीं पहुंच रहे हैं।
समस्तीपुर । शराबबंदी के समय जिले में नशामुक्ति केंद्र की स्थापना हुई । इस पर लाखों खर्च भी किए गए। आरंभ में तो यहां कुछ मरीज आए भी, लेकिन अब एक भी मरीज यहां नहीं पहुंच रहे हैं। यह केन्द्र यूं ही बेकार पड़ा है। जबकि आए दिन नशे में धुत लोग गिरफ्तार हो रहे हैं। अब इन केंद्रों पर वीरानी छाई रहती है। मजबूरन अस्पताल प्रशासन ने इस केंद्र में अब सामान्य मरीजों को भर्ती करना शुरु कर दिया है। सदर अस्पताल में तामझाम के साथ दस बेड वाले नशा मुक्ति केंद्र का शुभारंभ एक अप्रैल 2016 को हुआ। केंद्र में टीवी के साथ मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध कराए गए थे। चिकित्सक और कर्मियों की प्रतिनियुक्ति भी की गई। परंतु अब इस केंद्र पर एक भी मरीज नहीं आते हैं। शराब की लत छुड़ाने के लिए वर्ष 2016 में 175 शराबी नशा मुक्ति केंद्र में पहुंचे थे। जबकि, अब तक केंद्र पर मात्र 193 मरीज ही पहुंचे। आदतन शराब के मरीज अब अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं। अस्पताल प्रशासन ने इस केंद्र में अब सामान्य मरीजों को भर्ती करना शुरु कर दिया है। केंद्र को बनाया गया था हाइटेक
जिले में नशा मुक्ति केंद्र शुरू किया गया था। केंद्र में एसी, डिश टीवी के साथ मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध कराए गये थे। वार्ड को एसी सहित काफी सुविधायुक्त बनाया गया था। वहां काउंसिलर व चिकित्सकों की नियुक्ति भी की गई थी। लेकिन, केंद्र से नशेड़ी शुरूसे ही दूरी बनाए हुए थे। आधुनिक सुविधाओं से लैस केंद्र पर एक भी मरीज नहीं पहुंचते हैं। शराबबंदी के दो साल होने को हैं, लेकिन केंद्र में अब तक शराब सहित अन्य नशा के शिकार सिर्फ 193 व्यक्ति ही इलाज के लिए पहुंचे हैं। इसमें शराबी के अलावा गांजा, भांग, ड्रग्स जैसे नशा की गिरफ्त में आए लोग अधिक हैं। जानकार बताते हैं कि नशेड़ी लोकलाज के कारण भी केंद्र में नहीं जाना चाहते हैं। अब तक केंद्र में पहुंचे 193 मरीज
नशा मुक्ति केंद्र की बात करें तो कुल 193 मरीज अब तक इलाज के लिए पहुंचे हैं। इनमें से पिछले वर्ष 2016 में 175 मरीज है। जबकि, जनवरी 2017 में 2, फरवरी 2017 में 2, मार्च 2017 में 3, अप्रैल 2017 में 2, मई 2017 में शून्य, जून 2017 में 2, जुलाई 2017 में शून्य, अगस्त 2017 में शून्य, सितंबर 2017 में 3, अक्टूबर 2017 में 1, नवंबर 2017 में शून्य, दिसंबर 2017 में 3, जनवरी 2018 में शून्य और 15 फरवरी 2018 तक शून्य मरीज चिकित्सा के लिए पहुंच चुके है। हालांकि इनमें से सभी शराबी नहीं थे बल्कि, गांजा व गुटखा के भी मरीज पहुंचे थे। वर्तमान में स्थिति यह है कि कई महीनों में एक-आध मरीज सलाह के लिए पहुंचते हैं। आशा को करनी थी शराबियों की पहचान
ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत आशा को शराबियों की पहचान करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी। आशा को कुछ सवाल पूछकर आदतन शराबी की पहचान करनी थी। उसके बाद ऐसे शराबी को नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराने की जिम्मेदारी भी दी गई थी। परंतु अभियान सफल नहीं हो पाया।
नशा मुक्ति केंद्र में आदतन शराबी के इलाज की व्यवस्था की गई थी। इन दिनों इस तरह के मरीज केंद्र में नहीं पहुंच रहे है।
डॉ. विवेकानंद झा,
सिविल सर्जन,
समस्तीपुर।