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दावों और वादों की पोल खोलती बंद उद्योग-धंधों की स्याह तस्वीर

समस्तीपुर। वर्षो से बंद समस्तीपुर चीनी मिल मुक्तापुर जूट मिल और हायाघाट पेपर मिल।

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 11:37 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 06:24 AM (IST)
दावों और वादों की पोल खोलती बंद उद्योग-धंधों की स्याह तस्वीर
दावों और वादों की पोल खोलती बंद उद्योग-धंधों की स्याह तस्वीर

समस्तीपुर। वर्षो से बंद समस्तीपुर चीनी मिल, मुक्तापुर जूट मिल और हायाघाट पेपर मिल। चुनावी वादों और दावों की पोल खोल रही। हर चुनाव में किसानों और बेरोजगारों के हित में इन्हें चालू कराने के वादे किए जाते, लेकिन जीत के बाद मजबूरियों का हवाला। इस बार भी मुद्दों के हवाले से इन मिलों का जिक्र छिड़ा है। उद्योग धंधों की कमी, कृषि प्रधान जिले में कृषि संबंधी बाजार और इसका हब बनाए जाने की आस लिए इस बार भी मतदाता वोट के लिए हुंकार भर रहे। प्रत्याशियों के गुण-दोष बहस का हिस्सा बने हैं। लोग स्थानीय मुद्दों को नकारते हुए देश स्तर पर ही इस चुनाव के संपन्न होने की बात कह रहे। समस्तीपुर से मुकेश कुमार की रपट।

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संसदीय क्षेत्र बदला, नहीं बदली पेपर मिल की सूरत

हायाघाट विधानसभा क्षेत्र में स्थित अशोक पेपर मिल पूर्व में दरभंगा संसदीय क्षेत्र का हिस्सा था। उस जमाने में भी यहा के लोग मिल बंदी से त्रस्त थे। स्थिति में बदलाव नहीं हुआ। मिल की 650 एकड़ जमीन वीरान है। यह कारखाना असम और बिहार में एक साथ लगाया गया था। बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्रालि और डॉ. कामेश्वर सिंह के संयुक्त उपक्रम अशोक पेपर मिल का अधिग्रहण तत्कालीन सरकार ने कर लिया। उस समय सरकार ने तर्क दिया कि रोजगार बचाने का दायित्व है और वर्तमान प्रबंधन इसे चलाने में असमर्थ है, इसलिए कारखाना अब सरकार चलाएगी। कोर्ट के हस्तक्षेप से आखिरकार धरम गोधा को मिल की कमान सौंपी गई। शर्त थी कि असम और बिहार, दोनों संयत्रों को एक खास समयावधि में चालू किया जाए। असम वाले संयंत्र को चालू कर दिया गया, लेकिन दरभंगा को चालू नहीं किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। फिर भी, इसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। मिल के लिए आदोलन करनेवाले देवकात राय बताते हैं कि यह 30 वषरें से बंद है। करीब 18 वर्ष पूर्व इसे चलाने की कोशिश तो हुई, लेकिन सफलता नहीं मिली। विशाल परिसर में गाड़िया सड़ रही हैं। पुलिस आउट पोस्ट भी पतोर चला गया। वीरान पड़ी मिल के गार्ड रामबाबू बताते हैं कि हय्यों कोनो वीर बेटा एैबे नई करैछे। हमर सबक आख पथरा गेल। उपेक्षा की शिकार हो गई जूट मिल

उत्तर बिहार का इकलौता जूट मिल छह जुलाई 2017 से बंद है। इससे तकरीबन पाच हजार श्रमिक और कर्मी बेरोजगार हो गए। श्रमिकों का कहना है कि जब भी बाजार में किसी तरह की समस्या उत्पन्न होती है, प्रबंधन किसी न किसी बहाने मिल बंद कर देता है। पीएफ सहित अन्य मद में श्रमिकों का लाखों का बकाया है। बताया जाता है कि मुक्तापुर में 84 एकड़ रकबा में स्थित रामेश्वर जूट मिल की स्थापना 1926 में हुई थी। दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह ने अपने पिता रामेश्वर सिंह के नाम पर इसे खोला था। 1954 तक दरभंगा महाराज ने चलाया। इसके बाद 76 तक मेसर्स बिरला ब्रदर्स ने चलाया। 1976 में एमपी बिरला ने इसका अधिग्रहण कर लिया। 1986 से मिल का स्वामित्व विल्सम इंडिया के पास है। 125 करोड़ कासालाना कारोबार करनेवाली मिल में आज तालाबंदी है। प्रबंधन का कहना है कि उसके उत्पाद को सही रूप से बाजार नहीं मिला। कच्चे माल की उपलब्धता के लिए अधिक खर्च करना पड़ रहा। लागत के हिसाब से उत्पादन प्राप्त नहीं हो रहा। बिजली की भी समस्या है और सरकार भी ध्यान नहीं दे रही।

सरकार ने त्याग दिया दोबारा चलाने का निश्चय

समस्तीपुर के लिए लाइफ लाइन मानी जानेवाली चीनी मिल वर्ष 1995 में बंद हो गई। राज्य सरकार ने 2006 में वारिसलीगंज के अलावा बनमनखी, हथुआ, गुरारू, गोरौल, सिवान, समस्तीपुर और लोहट चीनी मिल को दीर्घकालिक लीज पर चलाने के लिए निजी निवेशकों से टेंडर भी मंगाए, लेकिन ऐसा कोई सामने नहीं आया। इस कारण इन्हें चलाने का निश्चय सरकार ने त्याग दिया। बाद के दिनों में इस मिल की संपत्ति व जमीन को नीलाम किया जाने लगा। कुछ की नीलामी भी हो चुकी है। इसमें भी नीलामी की पूरी राशि का भुगतान नहीं किया गया। इस कारण आज भी मजदूरों के बकाए का भुगतान नहीं हो पाया।


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