जोखनेश्वर महादेव की महिमा अपरंपार
सरायरंजन प्रखंड मुख्यालय से महज एक किलोमीटर पूरब गुढ़मा गांव में स्थापित हैं जोखनेश्वर महादेव।
समस्तीपुर। सरायरंजन प्रखंड मुख्यालय से महज एक किलोमीटर पूरब गुढ़मा गांव में स्थापित हैं जोखनेश्वर महादेव। इस महादेव की करीब दौ सौ वर्षों से पूजा-अर्चना की जा रही है। यहां प्रतिदिन शिव¨लग की जल,दूध, दही, पंचामृत से रूद्राभिषेक और पूजा-अर्जना होती है। यूं तो यहां वर्ष भर पूजा-अर्चना का दौड़ चलता रहता है, पर महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में यहां असंख्य भक्त-श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।
मंदिर का इतिहास
कहते हैं कि आज से करीब दौ सौ वर्ष पूर्व ब्रिटिश शासन काल के दौरान मोसाहेब ईश्वर ने गुढ़मा गांव स्थित प्राचीन तालाब के किनारे इस मंदिर की आधारशिला रखी थी। बाद में उनके पुत्र जोखन ईश्वर ने मंदिर को भव्य रूप दिया। इसकी भी एक रोचक कथा है। एक बार जोखन ईश्वर पर ब्रिटिश शासनकाल में एक राजद्रोह के मुकदमे में फंस गये। इन्हें सजा मिलना तय था। शिवभक्त जोखन ईश्वर शिव की विशेष अराधना कर अदालत पहुंचे। संयोगवश वे रिहा कर दिए गये। उस दिन से शिव के प्रति उनकी आस्था और बढ़ गयी। इसके बाद उन्होंनें उक्त मंदिर को भव्य रूप दिया। बाद में उक्त महादेव का नामाकरण उनके नाम पर ही जोखनेश्वर महादेव कर दिया गया।
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जोखनेश्वर महादेव की अपने भक्तों पर विशेष कृपा रहती है। वर्तमान पैक्स अध्यक्ष ललन कुमार ईश्वर को एक जहरीले नाग ने डंस लिया था। शिव की अराधना से वे भला-चंगा हो गये। इस दिन से वे प्रत्येक रविवार को नियमित रूप से मंदिर परिसर में भजन-संकीर्तन करने आते हैं। विवाह और पुत्र प्राप्ति के लिए भी महिलाएं बाबा की पूजा-अर्चना के लिए यहां आती हैं।
-पूर्व विधायक संत रामाश्रय ईश्वर, सरायरंजन।
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यहां सालों भर धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। ऐसा देखने को मिलता है कि यहां आयोजित होनेवाले अष्टयाम एवं संकीर्तन का आनंद कई विषैले नाग भी आकर उठाते हैं और वे किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाते। श्रावण मास में कांवड़ियों के जलाभिषेक के कारण यहां का सारा वातावरण केसरिया से रंगकर ''बोलबम'' से अनुगुंजित हो उठता है।
- व्यवसायी कृष्ण कुमार ईश्वर, गुढ़मा।
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भाव के भूखे भोलेनाथ
भाव के भूखे भोलेनाथ एक लोटा जल और एक-दो बेलपत्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं भोलेनाथ, क्योंकि वे धन के नहीं, भाव के भूखे हैं। इसलिए उन्हें आमलोगों का भगवान कहा जाता है। शिव का अर्थ होता है कल्याण। यदि सावन में श्रद्धालु अंधभक्ति के बजाय कल्याणकारी कार्यों को भी संपादित करे, तो यह भगवान शिव की सबसे बड़ी उपासना होगी।
-पुजारी वैद्यनाथ गिरि, सरायरंजन।