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खसरा-रूबेला जानलेवा, बचाव को स्वास्थ्य विभाग अलर्ट

स्वास्थ्य विभाग ने खसरा और रूबेला को पूरी तरह से खत्म करने को ठान लिया है। इसके लिए मिशन 2020 का प्लान तैयार किया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Feb 2019 11:38 PM (IST)Updated: Wed, 06 Feb 2019 11:38 PM (IST)
खसरा-रूबेला जानलेवा, बचाव को स्वास्थ्य विभाग अलर्ट
खसरा-रूबेला जानलेवा, बचाव को स्वास्थ्य विभाग अलर्ट

समस्तीपुर । स्वास्थ्य विभाग ने खसरा और रूबेला को पूरी तरह से खत्म करने को ठान लिया है। इसके लिए मिशन 2020 का प्लान तैयार किया है। योजना के तहत महाअभियान चलाकर बच्चों का टीकाकरण किया जा रहा है। 9 माह से लेकर 15 वर्ष तक की के सभी बच्चों को खसरा एवं रूबेला बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। इस टीके से शिशु मृत्यु दर तथा जन्मजात रूबेला ¨सड्रोम में कमी आएगी। जिले में 9 माह से 15 वर्ष तक के 16,53,727 बच्चों को लक्षित किया गया है। इसके तहत शहरी और ग्रामीण इलाकों में कर्मी घर-घर जा कर टीकाकरण करेंगे। स्वास्थ्य विभाग ने इस महाअभियान के लिए कार्ययोजना तैयार कर ली है। अभियान के तहत स्कूलों में 3906 सत्र स्थल, 4085 आउटरीच सत्र स्थल, 11 फिक्स सत्र स्थल, दूरस्थ क्षेत्र के लिए 29 मोबाइल दल, 13302 टीकाकर्मी, 13302 आशा व स्वयं सेवियों, 3537 पर्यवेक्षकों को लगाया गया है। सुरक्षित तरीके से हो रहा टीकाकरण

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खसरा-रूबेला का टीका सूखे पाउडर के रूप में होता है। जिसे केवल निर्माता द्वारा उपलब्ध कराए गए तरल पदार्थ से पुनर्निर्मित किया जाता है। एक वैक्सीन वायल में मौजूद सूखे पाउडर में एम्पयूल के पूरे डाइल्यूएंट को मिलाया जाता हैं। वैक्सीन के रख-रखाव और टीकाकरण किए जाने की सभी अवस्थाओं के दौरान शीत श्रृंखला को सही तरीके से रखनी चाहिए। पुन: निर्मित वैक्सीन को चार घंटे के भीतर या सत्र समाप्ति पर, जो भी पहले हो, निस्तारण कर देना चाहिए। प्रत्येक वायल में 10 खुराक होती हैं। लक्षित आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए टीके की मात्रा 0.5 मिली लीटर ही होती हैं। बच्चों को टीका सबक्यूटेनियस माध्यम से लगाया जाता हैं। खसरा-रूबेला का टीका लगाने का सही जगह दाएं अथवा सीधे हाथ का ऊपरी हिस्सा होता हैं। क्या है खसरा रोग

- खसरा एक घातक रोग है तथा यह बच्चों में दिव्यांगता या मृत्यु के प्रमुख कारण में से एक हैं।

- खसरा अत्यधिक संक्रामक होता जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से फैलता हैं।

- खसरे के कारण आपके बच्चे में प्राणघातक जटिलताओं की संभावना बढ़ जाती है जैसे निमोनिया, डायरिया और मस्तिष्क का बुखार।

- सामान्य तौर पर खसरे के लक्षण हैं- चेहरे पर गुलाबी-लाल चकत्ते, अत्यधिक बुखार, खांसी, नाक बहना और आंखों का लाल हो जाना। क्या है रूबेला रोग

- अगर स्त्री को गर्भावस्था के आरंभ में रूबेला संक्रमण होता है तो जन्मजात रूबेला ¨सड्रोम विकसित हो सकता है। जो भ्रूण और नवजात शिशुओं के लिए गंभीर और घातक साबित हो सकता है। प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान रूबेला से संक्रमित माता से जन्म लेने वाले बच्चों में दीर्घकालिक जन्मजात विसंगतियों से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है। जिससे आंख में ग्लूकोम व मोतिया¨बद, कान में बहरापन, मस्तिष्क में माइक्रोसिफेली व मानसिक मंदता प्रभावित होती है तथा दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता हैं। रूबेला से गर्भवती स्त्री में गर्भपात, अकाल प्रसव और मृत प्रसव की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। किन-किन बच्चों का नहीं होगा टीकाकरण

- बच्चे को अत्यधिक बुखार या अन्य गंभीर बीमारी जैसे बेहोशी, दौरे आना आदि हैं।

- बच्चा अस्पताल में भर्ती हैं।

- पहले कभी खसरा-रूबेला के टीके से गंभीर एलर्जिक प्रतिक्रिया का इतिहास रहा हो। वैक्सीन से दूर होगी बीमारी

अभियान में इस बार बच्चों को दो अलग-अलग के बजाय एक ही एमआर वैक्सीन लगाई जाएगी, जो कि बच्चों को खसरा और रूबेला दोनों बीमारियों से बचाव करेगी। खास बात यह भी है कि इस तरह का अभियान इन दोनों बीमारियों को पूरी तरह से खात्मे में सहायक सिद्ध होगा। नौ माह से 15 साल तक के बच्चों का एमआर टीकाकरण होगा। इसके लिए कक्षा- 10 तक के बच्चों को टारगेट किया जा रहा है। इससे जिले के करीब 95 फीसद बच्चों का टीकाकरण पूरा किया जा सकेगा। इसके अलावा अन्य बच्चों तक पहुंचने के लिए समुदाय के बीच टीकाकरण सत्र का आयोजन किया जाएगा। यह अभियान तब तक चलता रहेगा, जब तक 100 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण न हो जाए। वर्जन

खसरा और रूबेला वायरस के कारण होता है। इसके लिए जिले में 16,53,727 बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य किया गया है। साथ ही, अभियान की सफलता के लिए कार्ययोजना बनाकर टीम द्वारा कार्य लिया जा रहा है। संक्रामक बूंदों द्वारा हवा से और यह अत्यधिक संक्रामक है। संक्रामक बूंदों द्वारा हवा में जब संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है, तो गर्भवती स्त्री के पेट में पल रहे बच्चे को संक्रमण हो सकता है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे और 20 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों में खसरा जैसा गंभीर रोग हो सकता हैं। डायरिया, निमोनिया और मस्तिष्क के संक्रमण की जटिलता की वजह से मृत्यु हो सकती है। खसरा-रूबेला अभियान के पूरा होने के बाद टीके की दो खुराक 9 से 12 महीने और 16 से 24 महीने की उम्र में नियमित टीकाकरण में दिया जाएगा।

डॉ. सतीश कुमार सिन्हा,

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी,

स्वास्थ्य विभाग, समस्तीपुर।


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