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आर्सेनिक प्रभावित प्रखंडों में फिल्टर लगाने की पहल, महावीर कैंसर संस्थान ने बढ़ाया हाथ

जिले के चार प्रखंडों में आर्सेनिक और इसके प्रभाव को देखते हुए आर्सेनिक फिल्टर लगाने की तैयारी चल रही। पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान एवं रिसर्च सेंटर की ओर से पहल हो रही।

By JagranEdited By: Published: Tue, 24 Dec 2019 12:51 AM (IST)Updated: Tue, 24 Dec 2019 12:51 AM (IST)
आर्सेनिक प्रभावित प्रखंडों में फिल्टर लगाने की पहल, महावीर कैंसर संस्थान ने बढ़ाया हाथ
आर्सेनिक प्रभावित प्रखंडों में फिल्टर लगाने की पहल, महावीर कैंसर संस्थान ने बढ़ाया हाथ

समस्तीपुर । जिले के चार प्रखंडों में आर्सेनिक और इसके प्रभाव को देखते हुए आर्सेनिक फिल्टर लगाने की तैयारी चल रही। पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान एवं रिसर्च सेंटर की ओर से पहल हो रही। इसमें कोलकाता का केंद्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थान भी मदद कर रहा। फिल्टर उसी के माध्यम से उपलब्ध कराए जा रहे। इंडो-यूके प्रोजेक्ट के तहत आर्सेनिक के दुष्प्रभाव पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों की टीम के दौरे के बाद इस पर तेजी से काम चल रहा। टीम के मुख्य वैज्ञानिक और महावीर कैंसर संस्थान के एचओडी डॉ. अशोक कुमार घोष ने बताया कि समस्तीपुर समेत भागलपुर, बक्सर, वैशाली, भोजपुर व पटना में आर्सेनिक का खतरा बढ़ता जा रहा। इन क्षेत्रों के लोगों को राहत पहुंचाने के लिए संस्थान की ओर से आर्सेनिक फिल्टर लगाया जा रहा।

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मनेर और भागलपुर में लगा है फिल्टर

डॉ. अशोक कुमार घोष ने बताया कि केंद्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थान से हमें आर्सेनिक फिल्टर मिला था। इसके बक्सर, भागलपुर और मनेर में लगाए गए हैं। अभी हमारी टीम समस्तीपुर में लगाने की प्लानिग कर रही। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग और यूके इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिसिएटिव (यूकेआइईआरआइ) के संयुक्त प्रोजेक्ट के तहत महावीर कैंसर संस्थान एवं रिसर्च सेंटर और आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम काम कर रही। आर्सेनिक प्रभावित जिलों से पांच महीने पहले गेहूं और आटे के नमूने जमा किए गए थे। उसमें आर्सेनिक की मात्रा पाई गई थी। पटना से तीन के अलावा लंदन से दो वैज्ञानिक डॉ. लारा व रिचर्ड भी पहुंचे थे। -------------------

इस तरह बढ़ती है आर्सेनिक की मात्रा

डॉ. अशोक कुमार घोष ने बताया कि गेहूं और आटे की लैब में जब जांच की गई तो विभिन्न जिलों के सैंपल में अलग-अलग स्तर में आर्सेनिक की मात्रा पाई गई। विशेषज्ञों के अनुसार, गेहूं की पैदावार में इन जिलों के कुछ हिस्सों में सिचाई के लिए आर्सेनिकयुक्त पानी का इस्तेमाल होता है। फसल लगातार आर्सेनिक शोषित करती है। फसल तैयार होने के बाद रोटी बनाने के लिए जब गेहूं का आटे के रूप में इस्तेमाल होता है तो गूंथने के लिए आर्सेनिकयुक्त पानी का ही इस्तेमाल होता। इस प्रकार आटे में आर्सेनिक की कई गुना मात्रा बढ़ती जाती है।

इधर, पानी में आर्सेनिक के प्रभाव को देखनेवाले डॉ. हैदर बताते हैं कि आर्सेनिक के प्रभाव से हाईपर कैरोटोसिस नामक बीमारी होती है। त्वचा मोटी होने लगती। बाद में हाईपर पिगमेंटनेशन में परिवर्तित हो जाता। त्वचा का रंग गहरा काला हो जाता है। यह विकसित होकर एक्सप्लोटिव डर्मेटाईटिस का रूप ले लेता है। इससे त्वचा की परतें फटने लगती हैं और नाखून पर सफेद लकीर नजर आने लगती है। इसका अंतिम परिणाम कैंसर तक होता है।

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