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हर्टिकल्चर में स्वरोजगार की अपार संभावनाएं, दैनिक जीवन में भी उपयोगी

समस्तीपुर। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के संचार केंद्र भवन स्थित सभागार में गुरुवार को छमाही माली प्रशिक्षण का उद्घाटन कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव ने किया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 12:01 AM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 06:15 AM (IST)
हर्टिकल्चर में स्वरोजगार की अपार संभावनाएं, दैनिक जीवन में भी उपयोगी
हर्टिकल्चर में स्वरोजगार की अपार संभावनाएं, दैनिक जीवन में भी उपयोगी

समस्तीपुर। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के संचार केंद्र भवन स्थित सभागार में गुरुवार को छमाही माली प्रशिक्षण का उद्घाटन कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव ने किया। मौके पर कुलपति ने अपने संबोधन करते हुए कहा कि माली शब्द सुनने में छोटा लगता है लेकिन इस क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। 6 महीने का विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण पाने के उपरांत उद्यान से संबंधित जितनी भी जानकारी है, सभी प्रशिक्षणार्थियों को प्राप्त हो जाएगी। इससे प्रशिक्षणार्थी नौकरी के साथ-साथ स्वरोजगार से भी जुड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज कृषि का क्षेत्र हो या फिर अन्य, मजदूर की समस्या सब जगह है। ऐसे में हमें स्वरोजगार से जुड़ना आवश्यक है। कुलपति ने कहा कि इस बार सभी प्रशिक्षणार्थियों को उद्यान से संबंधित टूल्स भी दिए जाएंगे। मौके पर उपस्थित कृषि अधिष्ठाता डॉ. के एम सिंह ने कहा कि प्रशिक्षण से दक्षता में वृद्धि होती है। हर्टिकल्चर एक ऐसा विषय है, जिसका मानव जीवन में हमेशा जरूरत पड़ती है। इसमें रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। लोग स्वयं का नर्सरी लगाकर अपना जीवन यापन कर सकते हैं। सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों में अभी भी गार्डन की प्रचलन है। जिसमें माली की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। मौके पर उद्यान के वैज्ञानिक डॉ. उदित कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा संपोषित इस प्रशिक्षण में बिहार के बेगूसराय, भागलपुर, मुंगेर, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर से 25 प्रशिक्षणार्थियों का चयन किया गया है, जो 6 महीने तक विश्वविद्यालय में माली से संबंधित सभी प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। इस प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए लिखित एवं मौखिक परीक्षा में पास प्रशिक्षणार्थी ही भाग लेते हैं। मौके पर उद्यान विभाग के अधिष्ठाता डॉ. कृष्ण कुमार सहित उद्यान वैज्ञानिक डॉ.एम एल यादव, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ अरुण कुमार, डॉ. निहारिका कंठ, डॉ. बृजेश शाही सहित कई वैज्ञानिक एवं अधिष्ठाता मौजूद थे।

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