किसानों के समक्ष परिवार चलाना विकट, श्रमिकों को काम का संकट
जिला मुख्यालय से सटे वारिसनगर प्रखंड के लोगों का मुख्य आधार कृषि और इससे जुड़े कार्य हैं। आधे से अधिक लोग कृषि मजदूरी या अन्य दैनिक मजदूरी पर ही आश्रित हैं। कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन से कृषि मजदूरों को काम तो मिलता रहा परंतु अन्य मजदूरों का कार्य ठप हो जाने के कारण उन सभी के समक्ष परिवार चलाना एक गंभीर संकट बन गया है ।
समस्तीपुर । जिला मुख्यालय से सटे वारिसनगर प्रखंड के लोगों का मुख्य आधार कृषि और इससे जुड़े कार्य हैं। आधे से अधिक लोग कृषि मजदूरी या अन्य दैनिक मजदूरी पर ही आश्रित हैं। कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन से कृषि मजदूरों को काम तो मिलता रहा, परंतु अन्य मजदूरों का कार्य ठप हो जाने के कारण उन सभी के समक्ष परिवार चलाना एक गंभीर संकट बन गया है । इधर जब प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला शुरू हुआ तो मजदूरों की संख्या मे भी भारी इजाफा हुआ है। अब स्थिति यह बन रही है कि मजदूरी दर में भी कटौती करने के बावजूद उन्हें काम नही मिल पा रहा है। सबसे विकट स्थिति तो क्षेत्र के किसानों के समक्ष बनी हुई है। उन लोगों ने बड़ी मेहनत से सब्जी की खेती की थी। सब्जी की फसल हुई भी काफी अच्छी, परंतु जिला से बाहर सब्जी नहीं जाने व बाहर से व्यापारियों के नहीं आने के कारण इन सभी ने औने-पौने दाम में इन्हें बेच किसी तरह लागत राशि की वसूली की। वहीं, रही-सही कसर आंधी-ओला से उनकी कमर टूट चुकी है। बावजूद विपरीत परिस्थितियों में इन किसानों ने सुखद भविष्य का सपना देखना नहीं छोड़ा है और फिर से अपने कार्य में लग गए।
गोही पंचायत के बरियारपुर निवासी रमेश पासवान का बताना है कि कोरोना वायरस के इस लॉकडाउन मे उपज उपरान्त लागत की भी वसूली नहीं हो पाई है। बटाई व ठीका पर लेकर पूरे परिवार संग मिलकर मेहनत कर मेहनत की। इस लॉकडाउन ने इस स्थिति पर ला दिया है कि जिन-जिन व्यक्तियों से रुपये लेकर काम किया। रुपया तो देना है खेत में चुकंदर व गाजर लगा हुआ भी है, परंतु कोई खरीदर तो मिले। बाजार समिति भी ले गया परंतु लागत भी नही मिली। वहीं कोल्ड स्टोर मे भी इसे नही रखा जा रहा है। अब आगे भी खेती करनी है तथा इन फसलों को उखाड़ने की भी राशि नहीं रहने पर आमजनों को उसे उखाड़कर ले जाने हेतु कहा गया है। बयान
प्रखंड में अब तक 423 प्रवासियों का चयन किया गया है। इनको राजमिस्त्री, सिलाई-कटाई-बुनाई, गोपालन मत्स्यपालन, वर्मी कंपोस्ट उत्पादन कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाएगा। मनरेगा के तहत प्रवासी कामगारों को जॉब कार्ड देकर काम दिया जाएगा।
अजमल परवेज, प्रखंड विकास पदाधिकारी, वारिसनगर
परिवार के साथ बंगाल में रहता था। जिन्दगी मजे मे कट रही थी। इस बीच कोरोना वायरस के इस प्रकोप ने मानो त्राहिमाम सा मचा दिया। लॉकडाउन मे एक माह तक तो सभी कुछ ठीक-ठाक चला। फिर एक माह फांकाकशी मे गुजारा। अब घर आया हूं, परंतु मनमुताबिक काम नही मिल पा रहा है।
सुरेश कुमार, पुरनाही
कोयंमबटूर मे डायरी व कैलेंडर की छपाई मे अच्छी कमाई हो रही थी, जिससे गांव मे परिजनो को भी पैसा भेजकर उनका पेट भरता था। घर आने के बाद क्वारंटाइन केंद्र पर 14 दिन रहने के बाद घर चार दिन पूर्व आया हूं, परंतु अखबार के अनुसार घोषित सरकारी योजनाओं में से अबतक सभी अप्राप्त है।
अशोक पासवान, मनियारपुर
आíथक तंगी को देखते हुए तीन माह पूर्व बेंगलुरु गया था । वहां पहुंचने के कुछ दिन बाद ही लॉकडाउन का शिकार हो गया। जो यहां से रुपया लेकर गया सभी समाप्त हो गया। भुखमरी मे किसी तरह समय व्यतीत कर घर आया हूं। घर आखिर घर है, आगे कहीं नही जाऊंगा ।
जीवछ मंडल, रोहुआ पूर्वी कुल आबादी : 2.5 लाख
मतदाता : 1.10 लाख
साक्षरता प्रतिशत : 61 फीसद
प्रखंड में आए कुल प्रवासी : 2650
संचालित क्वारंटाइन केंद्र : 38