Move to Jagran APP

सीटाके व ईरेनेसियस औषधीय मशरूम की उपज हुई आसान

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा मशरूम के प्रख्यात वैज्ञानिक डा. दयाराम ने औषधीय मशरूम के दो प्रभेदों को चिह्नित किया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 08:16 PM (IST)Updated: Sat, 15 Dec 2018 08:16 PM (IST)
सीटाके व ईरेनेसियस औषधीय मशरूम की उपज हुई आसान
सीटाके व ईरेनेसियस औषधीय मशरूम की उपज हुई आसान

समस्तीपुर । डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा मशरूम के प्रख्यात वैज्ञानिक डा. दयाराम ने औषधीय मशरूम के दो प्रभेदों को चिह्नित किया है। पहले इन औषधीय मशरूम की खेती विदेशों में होती है, लेकिन अब इसकी खेती सूबे समेत पूरे देश में की जा सकती है। इसके उपयोग से कई ऐसी बीमारियां हैं, जिससे निजात पाया जा सकता है। प्रयोग के तौर पर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कई किसानों के पास इसका जाकर परीक्षण किया। सीटाके मशरूम के संबंध में वैज्ञानिक डॉ. दयाराम ने बताया कि इसका उत्पादन करना अत्यंत आसान है। ओयस्टर एवं दूधिया मशरूम भी उगाया जा सकता है। भोजन में इसके इस्तेमाल से एक तरफ पौष्टिक आहार मिलता है, वहीं विभिन्न घातक बीमारियों की रोकथाम में नियंत्रण के लिए भी सहायक है। सीटाके मशरूम के सेवन से ब्लड सुगर एंटी कैंसर, एंटी टयूमर, दिल की बीमारी, मोटापा, लीवर की बीमारी आदि को नियंत्रित करता है और फर्टिलिटी को बढ़ाता है। सीटाके मशरूम की खेती लकड़ी के शुद्ध बुरादे पर की जाती है। परंतु लकड़ी के बुड़ादे की शुद्धता न होने से मैदानी इलाकों में असुविधा होती है। विकल्प के तौर पर गेहूं का भूसा या पुआल या गेहूं का भूसा एवं लकड़ी के बुरादे का प्रयोग किसान कर सकते हैं। इसकी बुआई से लेकर कटाई तक एक सौ से 120 दिन लगता है। प्रति 100 किलोग्राम भूसा से 30 से 35 किलोग्राम मशरूम उत्पादन होता है। बाजार में इसकी कीमत 1500 से 2000 रुपए प्रति किलोग्राम, शुष्क मशरूम 500 प्रति किलोग्राम की बिक्री आसानी से की जा सकती है। इसमें प्रोटीन की मात्रा काफी पाई जाती है। इस मशरूम में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट फाइबर वसा एवं सुगर की मात्रा भी अच्छी पाई जाती है। इसके उत्पादन के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं 70 से 80 प्रतश्त आद्रता होना आवश्यक है। हेरी सीएम ईरेनेसियस नामक औषधीय मशरूम ऐसा है जो उच्च गुणवत्ता वाले खाने योग्य औषधीय गुणों से भरपूर है। यह मशरूम नॉर्थ अमेरिका यूरोप एवं एशिया में पाया जाता है। इसमें एंटी ट्यूमर इमुनोमाडूलेसन कोलेस्ट्रोल नष्ट करने की क्षमता होती है। इसके पॉलीसैकराड अमाशय गला त्वचा के कैंसर में लाभकारी होता है। इसका उत्पादन भी सीटाके जैसी ही लकड़ी का बुरादे पर उत्तम माना गया है। परंतु गेहूं के भूसे में तथा गेहूं के भूसे तथा बुरादा के मिश्रण पर भी उगाया जा सकता है। इसके उत्पादन के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ-साथ पचासी से 90 प्रतिशत आर्दता का होना आवश्यक है। बुआई 55 से 60 दिनों के बाद इसकी प्रथम तोडाी जा सकती है। हेरी सीएम का उत्पादन एक किलोग्राम भूसा से 160 से 200 ग्राम उत्पादन लिया जा सकता है। विदेशों में औषधीय मशरूम की मांग काफी अधिक है। मशरूम वैज्ञानिक का बताना है कि बिहार सहित अन्य राज्यों में भी इस औषधीय मशरूम की खेती आसानी से हो सकती है। यहां पर गेहूं के भूसे से भी इसका सफल उत्पादन लिया जा सकता है। अब इस तकनीक को किसानों के बीच विस्तारपूर्वक लाने की योजना बनाई जा रही है। निदेशक अनुसंधान डॉ. मिथिलेश कुमार ने कहा कि सामान्य मशरूम से काफी पौष्टिक एवं लाभदायक औषधीय मशरूम है। वैज्ञानिकों के सफल प्रयास ने इसे चिन्हित किया है, अब जल्द ही इसे किसानों के बीच उपलब्ध कराया जाएगा।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.