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आयुषी ने जज्बे के दम पर लगाई ऊंची छलांग

मंजिल नहीं रास्ते बदलते हैं। जगा लो जज्बा जीतने का किस्मत की लकीरें चाहे बदले न बदले वक्त जरूर बदलता है .. एक कविता की यह पंक्ति समस्तीपुर जिले के विद्यापतिनगर प्रखंड के शेरपुर गांव के मुकेश चौधरी एवं अंजली देवी की पुत्री आयुषी कुमारी पर सटीक बैठती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 12:45 AM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2019 12:45 AM (IST)
आयुषी ने जज्बे के दम पर लगाई ऊंची छलांग
आयुषी ने जज्बे के दम पर लगाई ऊंची छलांग

समस्तीपुर । मंजिल नहीं, रास्ते बदलते हैं। जगा लो जज्बा जीतने का, किस्मत की लकीरें चाहे बदले न बदले वक्त जरूर बदलता है .. एक कविता की यह पंक्ति समस्तीपुर जिले के विद्यापतिनगर प्रखंड के शेरपुर गांव के मुकेश चौधरी एवं अंजली देवी की पुत्री आयुषी कुमारी पर सटीक बैठती है। आर्थिक तंगी के बावजूद अपने हौसले से वह अपनी और परिवार की किस्मत चमकाने के साथ जिले का भी नाम रौशन कर रही है। विद्यापतिनगर की रहने वाली फुटबाल गर्ल राज्य स्तर की प्रतियोगिता में बेगूसराय टीम का हिस्सा बनने का इंतजार कर रही है। गत दिनों के राज्य स्तर पर हुए टूर्नामेंट में बेहतर प्रदर्शन की वजह से उम्मीद जगी हुई है। बड़ा मुकाम पाने की कोशिश

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23 से 24 सितंबर तक सिवान में हुए महिला फुटबाल टूर्नामेंट में वह बेगूसराय टीम के लिए खेली। इसमें आयुषी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। उसे बेगूसराय टीम से कप्तानी का जिम्मा मिला हुआ है। जिस सामान्य परिवार से वह आती है वहां लड़कियों के खेलकूद का प्रचलन है। लेकिन, वह परिवार व रिश्तेदार के विरोध के बाद भी उसने फुटबाल खेलना नहीं छोड़ा और आज बड़ा मुकाम हासिल करने की कोशिश में लगी है। उसने महज एक साल में ही यह कामयाबी को हासिल की है। उसमें राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बनने की पूरी उम्मीद है। स्कूल में पढ़ने के साथ ही उसका फुटबॉल खेलने का काफी शौक था। लेकिन संसाधनों की कमी की वजह से वह अपने सपनों में पिछड़ रही थी। स्कूल प्रबंधक कुणाल कुमार ने उसके बेहतर प्रदर्शन को देखा। इसके बाद उसके सपने को हौसले का पंख लग गया। शुरुआती दौर में परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन, प्रबंधक और कोच गोविद कुमार सिंह के लगातार प्रयास की वजह से उसके पिता को मना लिया। जिसके बाद वह खुलकर अपना प्रदर्शन दिखा रही है। गरीबी में भी हिम्मत और हौसला

दो बहनों के परिवार का भरण-पोषण किसान पिता के खेती की कमाई से होता है। पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे उसको फुटबॉल के लिए कोचिग करा सके। लेकिन, स्कूल प्रबंधन का साथ मिलने के बाद वह लगातार अभ्यास करती रही। वह अब राज्य स्तर की प्रतियोगिता में भाग ले रही है। समस्तीपुर जिले में फुटबॉल टीम नहीं होने के कारण वह बेगूसराय जिले की ओर से खेलती है। कहती है फुटबॉल में बेहतर कोच मिलने के कारण ही आज इस मुकाम पर पहुंच सकी है।


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