इस गोशाला में 90 गायें और बछड़ों के सामने चारे का संकट
कभी गायों के गले में बंधीं घटियों के एकराग से लयबद्ध होती थी गोशाला। चौकड़ी भरते बछड़ों को देख हर्षित होता था मन। सुबह-शाम फूटती थी दूध की धारा..। अब यहा पसरा है सन्नाटा। नादों में सिर्फ भूसा दाने का निशान तक नहीं। कभी आधा पेट तो कभी वो भी नहीं। गायों की कातर आखें सबकुछ बया कर रहीं..। ये गायें अपने कृष्ण को पुकार रहीं।
समस्तीपुर । कभी गायों के गले में बंधीं घटियों के एकराग से लयबद्ध होती थी गोशाला। चौकड़ी भरते बछड़ों को देख हर्षित होता था मन। सुबह-शाम फूटती थी दूध की धारा..। अब यहा पसरा है सन्नाटा। नादों में सिर्फ भूसा, दाने का निशान तक नहीं। कभी आधा पेट तो कभी वो भी नहीं। गायों की कातर आखें सबकुछ बया कर रहीं..। ये गायें अपने कृष्ण को 'पुकार' रहीं।
रोसड़ा की प्रमुख धरोहरों में शामिल श्री गोशाला के 90 गोवंश के सामने चारे की गंभीर समस्या है। गोशाला पर कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन का गंभीर असर पड़ा है। भूसा, चोकर और अन्य चारे के दाम में अप्रत्याशित उछाल और सदस्यता शुल्क के साथ-साथ अन्य सहायता बंद होने के कारण गोशाला आर्थिक तंगी में पहुंच गई है। कमेटी के सचिव फुलेंद्र कुमार सिंह आशु एवं कोषाध्यक्ष रामेश्वर पूर्वे गोशाले की स्थिति से गोप्रेमियों को अवगत कराते हुए मदद की अपील कर रहे। समिति के पदाधिकारी अध्यक्ष स्थानीय एसडीओ अमन कुमार सुमन के साथ-साथ जिलाधिकारी एवं विभागीय मंत्री तक को पत्र भेज चुके हैं। सासद और विधायक से भी पत्राचार कर सदस्यों ने मदद की अपील की है। लेकिन, कहीं से सकारात्मक पहल नहीं दिख रही।
आय का तीन गुना प्रतिदिन हो रहा खर्च : इन दिनों गोशाला में दूध से होनेवाली आय से तीन गुना अधिक हर रोज खर्च हो रहा। कोषाध्यक्ष की मानें तो भूसे का भाव पहले की तुलना में पाच गुना अधिक हो गया है। चोकर और दाने के दाम में भी बढ़ोतरी हो गई है। इस कारण गोशाले में प्रतिदिन 12 से 13 हजार का खर्च आ रहा। जबकि, 100 से 105 लीटर दूध की बिक्री प्रतिदिन होती है। इससे गोशाला को हर रोज करीब 4000 रुपये की आय होती है। लॉकडाउन के बाद हर रोज आठ से नौ हजार का अतिरिक्त दबाव है।
1903 में हुई थी स्थापना : वर्ष 1903 में नगर पंचायत कार्यालय के सामने स्थापित श्री गोशाला स्थापना काल में पूर्ण समृद्ध थी। 90 के दशक में इस धरोहर पर जैसे ग्रहण लग गया। उचित देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे यह धराशाई होने लगी। लेकिन, स्थानीय गोभक्तों ने संकल्प के साथ गोसेवा शुरू की और धीरे-धीरे इसका उत्थान होने लगा। विगत चार वषरें में यह अपने पूर्ण स्वरूप में लौटने लगी थी। लेकिन, कोरोना वायरस की मार के कारण फिर उपेक्षा की शिकार हो रही।
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