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जान-जोखिम में डालकर तोसी ने की थी कोरोना पीड़ितों की सेवा

पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर आसमान की बुलंदी को छूनेवाली नारी शक्ति स्वभाव के अनुसा

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 07:05 PM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 07:05 PM (IST)
जान-जोखिम में डालकर तोसी ने 
की थी कोरोना पीड़ितों की सेवा
जान-जोखिम में डालकर तोसी ने की थी कोरोना पीड़ितों की सेवा

पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर आसमान की बुलंदी को छूनेवाली नारी शक्ति स्वभाव के अनुसार सेवा के मामले में कर्तव्य से एक कदम आगे निकल जाती है। कोरोना संक्रमण काल में सहरसा की वरीय उपसमार्हता तत्कालीन कहरा सीओ कुमारी तोसी ने इस बात को साबित किया। लॉकडाउन प्रारंभ होने और अचानक विशेष रेलगाड़ी से जब प्रवासियों का आगमन शुरू हुआ तो उस समय प्रशासनिक अधिकारियों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर क्या और कैसे समस्याओं को निपटाया जाए। जब अधिकारी और कर्मी लोगों से मिलने उनकी समस्या जानने में परहेज करते थे। ऐसे समय में कुमारी तोसी ने पूरे धैर्य और शालीनता से मजदूरों की थर्मल स्क्रीनिग कराने के बाद उनके रहने, तत्काल भोजन का प्रबंध करने और आवश्यकता पड़ने पर कोविड आइसोलेशन केंद्र भेजने के कार्य देर रात को बखूबी निभाती रही। जरूरत पड़ने पर वह कई रात पूरी तरह जगकर पटेल मैदान के शिविर का पर्यवेक्षण किया।

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शहर के गरीबों को चिह्नित कर करती रही राशन का वितरण

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पटेल मैदान स्थित अस्थायी कोविड- 19 कैंप में लगातार लोगों के आवासन, रसोई व्यवस्था को देखते हुए कहरा सीओ कुमारी तोसी जिला स्कूल के मैदान में ठहरे बंजारा और शहर के ठ्ट्ठी टोला में रह रहे भिक्षुकों के बीच जाकर शारीरिक दूरी का पालन और मास्क का प्रयोग करने के साथ- साथ गरीबों को चिह्नित कर प्रशासन की ओर से हर पखवाड़ा राशन का भी वितरण करती रही। जब अन्य अधिकारी और कर्मी भिक्षुक टोला में गंदगी और संक्रमण के भय से जाने से कतराते थे। उस समय भी उन्होंने एक-एक भिक्षुकों की झोपड़ी तक पहुंचकर उनको सूचीबद्ध् किया और भूख मिटाने की सफल कोशिश की।

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लॉकडाउन अवधि में एक दिन का भी नहीं लिया अवकाश

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कुमारी तोसी का घर बगल के मधेपुरा जिले में ही है। परिवार के लोग कोविड-19 के खतरे के बीच काम कर तोसी को देखने के लिए तरसते रहे, परंतु उन्होंने अपने कर्तव्य को धर्म समझकर घर की ओर देखा भी नहीं और लॉकडाउन की अवधि में एक दिन भी अवकाश पर नहीं गई। बल्कि कार्यालय के कार्यों को भी पटेल मैदान में तंबू लगाकर निपटाती रही। उनका कहना है कि अधिकारी होने का मतलब सिर्फ सरकारी कार्यों को निपटाना नहीं है बल्कि कोरोना से देश और जिले के सामने जो चुनौती पेश किया। जिले के लाखों लोगों की जान खतरे में थी, ऐसे समय में मानवता का फर्ज निभाना सबसे बड़ा कर्तव्य था। इसी लिहाज से उन्होंने बिना कोई भय और परहेज किए भरसक अपनी भूमिका निर्वहन की कोशिश की। कहा कि विपरीत परिस्थिति में उन्हें जो जिम्मेवारी दी गई, उसे उन्होंने पूरा करने की कोशिश की। यह मेरे लिए सबसे प्रसन्नता का विषय है।


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