विशेष टिप्पणी: प्रधानमंत्री जी, कोसी की अभागी धरती पर आपका स्वागत है...
मैं कोसी अंचल हूं। प्राकृतिक आपदा, भयानक गरीबी एवं वोट की राजनीति में सिर्फ वादों की बारिश से सराबोर होकर बीमार कंपकंपाती कोसी। पेट की आग बुझाने के लिए मेरे गांव के गांव पुरुषविहीन से हो गए हैं। आपका बहुत उम्मीद के साथ स्वागत है।
भागलपुर [किशोर झा, संपादकीय प्रभारी]। मैं कोसी अंचल हूं। प्राकृतिक आपदा, भयानक गरीबी एवं वोट की राजनीति में सिर्फ वादों की बारिश से सराबोर होकर बीमार कंपकंपाती कोसी। पेट की आग बुझाने के लिए मेरे गांव के गांव पुरुषविहीन से हो गए हैं।
मेरे यहां किशोरवय के होते ही बच्चों (यदि पुरुष हैं) को दूसरे प्रदेशों में भेज दिया जाता है ताकि वे कुछ भी कमाकर लाएं तो परिवार का पेट भर सके। पुरुष के नाम पर कई गांवों में सिर्फ बूढ़े और मासूम बच्चे ही रहते हैं।
शिक्षा, बिजली, स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल आदि बुनियादी जरूरत यहां कागजों में ही सीमित हैं। प्रधानमंत्री जी, मैं आतिथ्य सत्कार की मर्यादा जानती हूं, इसलिए आपका अपनी अभागी धरती पर स्वागत करती हूं।
आपसे पूर्व भी यहां प्रधानमंत्री आते रहे हैं। देश के स्वप्नद्रष्टा माने जाने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी तक ने मेरी धरती पर कदम रखा और मुझे नजदीक से देखा लेकिन संभवत: उनमें से किसी ने मेरी पीड़ा को महसूस नहीं किया।
मेरे लिए देश के आजाद होने का मतलब सिर्फ इतना हो पाया कि मेरी धरती के कुछ लाल सरकार या विपक्ष में शामिल होने लगे लेकिन न तो मेरी और न मेरी अधिकतर संतान की हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया। सदियों से शापित मेरी धरती आजादी के बाद से ही अपने लोगों की उपेक्षा का दंश झेल रही है।
आजाद भारत में मुझे और मेरी संतान को सिर्फ वोट बैंक समझा गया और उसी तरह से इस्तेमाल करने की कोशिश की गई। हालात सुधारने की घोषणाएं मजाक बन कर रह गई हैं। वर्ष 2003 में आपके आदर्श रहे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कोसी महासेतु का शिलान्यास कर 2009 में उस पर रेल सेवा बहाल करने का दावा किया था।
उस समय को बीते भी छह साल से ज्यादा हो गए हैं। उस पर रेल सेवा बहाल करने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही है। पहले किए काम बारिश में बह रहे हैं। अरबों खर्च की गई रकम अब बर्बाद हो रही है, लेकिन किसी को परवाह नहीं है।
सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड के राघोपुर-फारबिसगंज में 20 जनवरी 2012 को मेगा ब्लाक हुआ था जो अब रेल सेवा से ही वंचित है। मैंने सुना है कि मेगा ब्लाक कुछ माह का होता है, यहां तो उसके नाम पर सालों से रेल सेवा ही ठप कर दी गई है।
कब चालू होगी कोई बता भी नहीं पा रहा है। मैं आपको बताना चाहती हूं कि इन इलाकों में ब्रिटिश हुकूमत के समय ट्रेन चलती थी लेकिन आजादी के बाद की पीढ़ी ने यहां कभी ट्रेन चलती नहीं देखी। केंद्र में बिहार के नेताओं ने प्रभाव दिखाया तो यहां से बड़े शहरों (जहां मजदूरों की जरूरत अधिक पड़ती है) जनसेवा एक्सप्रेस जैसी मजदूर ढोने वाली ट्रेनें चलवा दीं।
जो थोड़ी बहुत अन्य-मेल एक्सप्रेस ट्रेनें चलती भी हैं, उनमें यात्री सुविधा के नाम पर शर्मनाक स्थिति रहती है। क्या सरकार इस इलाके को सिर्फ मजदूरों के गढ़ के रूप में देखना चाहती है? यह कैसा विकास है?
प्रधानमंत्री जी, कहने को बहुत कुछ है लेकिन असहनीय पीड़ा से गला रुंध गया है। पीड़ा को सही तरीके से व्यक्त करने के लिए शब्द कम पडऩे लगे हैं। मैंने आपका बहुत नाम सुना है। बहुत उम्मीदें भी पाल रखी हैं मैंने।
सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि इस इलाके के लिए इतना अवश्य कर दीजिए कि लोगों को अपने क्षेत्र में दो जून की रोटी मिल सके। नवविवाहिताओं एवं बूढ़े माता-पिताओं का जीवन पेट की आग बुझाने के लिए परदेस में मजदूरी कर रहे अपने पति व बेटे का इंतजार करते न बीते।
लोकसभा चुनाव से पूर्व आपने इसी जगह पर घोषणा की थी कि वाजपेयी जी के सपने को पूरा किया जाएगा। अब घोषणा पर अमल करने की बारी है। मैं सदियों से अपनी स्थिति सुधरने का इंतजार कर रही हूं, आपकी कृपा दृष्टि का भी इंतजार करती रहूंगी।