नमो दैव्ये: महादैव्ये
सहरसा कला किसी की मोहताज नहीं होती। अगर मजबूत इरादा और संकल्प दृढ़ हो तो कुछ भी संभव ह
सहरसा कला किसी की मोहताज नहीं होती। अगर मजबूत इरादा और संकल्प दृढ़ हो तो कुछ भी संभव है। सिर्फ उच्च शिक्षा ही नहीं कला की बेहतर तालीम लेकर भी अनवरत सफलता की सीढ़ी चढ़ा जा सकती है। यह साबित किया है सहरसा केंद्रीय विद्यालय की कला शिक्षिका गरिमा गुप्ता ने।
बीएचयू से बीएफए, एमएफए, जेआरएफ की डिग्री प्राप्त करने के बाद वह पीएचडी की डिग्री प्राप्त कर रही हैं। इस क्रम में वह केंद्रीय विद्यालय के बच्चों को नन्हीं कलम से न सिर्फ पेंटिग्स का गुर सिखा रही हैं, बल्कि विभिन्न आयोजनों में घूमकर अपने अनुभवों से इससे फायदे को भी बता रही हीं। चित्रकारी को कैरियर बनाने के लिए बच्चों को उत्साहित करती हैं। कहती हैं कि कला में क्रमिक विकास का दर्शन होता है। कलाकारों का उद्देश्य अपने अनुभवों को कला के माध्यम से प्रकट करना होता है। प्रत्येक कलाकार अपने व्यक्तिगत अनुभवों को चित्रों में ढालता है। उनका कहना है कला का प्रयोग एवं उपयोग हर क्षेत्र में है। फैशन डिजाइन कपड़ों की डिजाइनिग, खिलौने की डिजाइनिग, मकान की डिजाइन, मॉडलिग, मिट्टी के पात्र एवं बर्तन बनाने की कला को सीख कर मनुष्य सफलता की सीढि़यों को चढ़ सकता है। कला के माध्यम से समाज में मनुष्य की अलग पहचान बनती है। कला एक कल्पना की तरह है जिसके माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति की जा सकती है।
------------------- कई अवार्ड से हो चुकी हैं सम्मानित
-------------------- कला के क्षेत्र में एकल प्रदर्शनी के वर्कशॉप, सेमिनार आदि के माध्यम से बनारस समेत देश के कई भागों में लोगों को गरिमा ने ना सिर्फ जागरूक किया बल्कि कई महत्वपूर्ण आवार्ड भी प्राप्त किया है। उनका मानना है कि बच्चों के व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए आज के परिवेश में कला जानना और उसे जीवन में उतारना बहुत जरूरी है। यह भी बच्चों को सफलता की ऊंचाई तक पहुंचा सकता है। केंद्रीय विद्यालय सहरसा के भी कई बच्चे इनसे प्रेरित होकर पेंटिग्स में अपना कैरियर बना रहे हैं।